इस मामले के समाचार पत्रिका में राज्य स्तर पर चर्चित रहा और बाद में जिसे शहर विधायक संजय शर्मा ने विधानसभा में भी उठाया। इस प्रकरण की तथ्यात्मक रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी मंगवाई और प्रदेश में नगरीय विकास के उच्चाधिकारियों की इस पर नजर है। इसके बावजूद यूआईटी ने इन प्लॉटों की पूरी प्रक्रिया को निरस्तकरने की कोई कार्रवाई शुरू ही नहीं की है।दो अभियंताओं ने तथ्य छिपाकर करा लिए बड़े साइज के प्लॉट आवंटित-यूआईटी अलवर के दो अभियंताओं ने नियमों के विपरीत दो प्लॉट अपने नाम आवंटित करा लिए। इनमें एक अभियंता नगर परिषद से भ्रष्टाचार के मामले में निलंबित भी रहे जो हमेशा ही चर्चित रहे हैं। इन्होंने बुध विहार में 500 वर्ग गज से अधिक का प्लॉट आवंटन करवाया जबकि एक अभियंता ने सूर्य नगर में 400 वर्ग गज से अधिक का प्लॉट कार्नर का आवंटित करवाया जिसको पिछले एक साल से नीलामी में नहीं लगने दिया। ये दोनों अभियंता इन प्लॉटों के साइज को लेकर टाइटल में ही नहीं आते थे।
प्रशासन करा सकता है मुकदमा दर्ज- यूआईटी में करोड़ों के प्लॉट आवंटन में तथ्यों को छिपाकर राजस्व को हानि पहुंचाने व धोखाधड़ी करने के आरोप में मुकदमा दर्ज करवा सकता है लेकिन प्रशासन मकदमा दर्ज कराने के बजाए फाइल को लंबित करके बैठा है जिससे बाद में समय अनुकूल रहने पर प्लॉट दिए जा सके। इस मामले में आपराधिक मामले के अधिवक्ता सरदार तारा सिंह सहित विशेषज्ञों ने बताया कि यह तो सीधे-सीधे 420 में मुकदमा बनता है। इसके साथ ही यह 120 बी भी सामने आ रहा है। यदि आपने जुर्म नहीं किया लेकिन आप साज- बाज तो थे।
इस मामले में यूआईटी सचिव को मुकदमा दर्ज कराना और आवंटन तत्काल निरस्त करना चाहिए। इसमें कोई भी संगठन आपराधिक मुकदमा दर्ज करवा सकता है।
मैं तो अभी नई आई हूं, समझ रहीं हूं- यूआईटी की सचिव डॉ. मंजू चौधरी कहती हैं कि मैंने अभी यूआईटी का कार्य भार संभाला है। मैं इस प्लॉट आवंटन की फाइल को देख नहीं पाई हूं। हमारा पूरा ध्यान प्रशासन शहरों की ओर में लगने वाले शिविरों की तरफ है। अभी प्लॉट निरस्त होने की कोई सूचना मेरे पास नहीं है।