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अलवर

राजनीति में धड़ेबाजी हावी, पहले चुनाव में भाजपा भारी फिर भी हारी

जिले की राजनीति में धड़ेबाजी हावी होने से पहले भी कई बार चुनाव में ऐन वक्त पर पासा पलट चुका है। पिछले दिनों धड़ेबाजी ने अलवर नगर परिषद में सभापति चुनाव में भाजपा का खेल बिगाड़ दिया, इससे पहले भी वर्ष 2014 में जिला प्रमुख चुनाव में जिले की इसी धड़ेबाजी के चलते भाजपा को जिला परिषद के चुनाव में भारी होने के बाद भी बाजी हारनी पड़ी।

अलवरDec 21, 2019 / 11:33 pm

Prem Pathak

राजनीति में धड़ेबाजी हावी, पहले चुनाव में भाजपा भारी फिर भी हारी

राजनीति में धड़ेबाजी हावी, पहले चुनाव में भाजपा भारी फिर भी हारी

अलवर. जिले की राजनीति में धड़ेबाजी हावी होने से पहले भी कई बार चुनाव में ऐन वक्त पर पासा पलट चुका है। पिछले दिनों धड़ेबाजी ने अलवर नगर परिषद में सभापति चुनाव में भाजपा का खेल बिगाड़ दिया, इससे पहले भी वर्ष 2014 में जिला प्रमुख चुनाव में जिले की इसी धड़ेबाजी के चलते भाजपा को जिला परिषद के चुनाव में भारी होने के बाद भी बाजी हारनी पड़ी। इससे पहले भी भाजपा 2009 में जिला प्रमुख की सीट गंवा चुकी है। राजनीति की धड़ेबाजी से कांग्रेस भी कई बार नुकसान उठा चुकी है।
जिले की राजनीति में धड़ेबाजी कोई नई बात नहीं है। पचास के दशक से जिले की राजनीति में धड़ेबाजी हावी रही। वर्ष 1952 से 70 तक कांग्रेस की राजनीति में धड़ेबाजी रही। इस कारण 1962 में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को सांसद तथा चार मंत्रियों तक को हार का मुंह देखना पड़ा। इसी दौर में कांग्रेस की धड़ेबाजी के चलते नगर परिषद से लेकर अन्य चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा। इसके बाद वर्ष 1967 में कांग्रेस धड़ों के नेताओं के बीच समन्वय हुआ तो उन्हें जीत मिली। कांग्रेस में 90 के दशक तक बड़े नेताओं के बीच धड़ेबाजी चलती रही। उन दिनों विपक्ष की मजबूत उपस्थिति नहीं होने के कारण सीपीआई को छोड़ अन्य दल कांग्रेस की इस धड़ेबाजी का ज्यादा लाभ नहीं ले पाए।
वर्तमान राजनीति में भी धड़ेबाजी कम नहीं

जिले की वर्तमान राजनीति में प्रमुख पार्टी भाजपा एवं कांग्रेस धड़ेबाजी की समस्या से उबर नहीं पाई हैं। हालांकि कांग्रेस को एक धड़े का पार्टी पर पूर्ण प्रभुत्व होने से कम नुकसान उठाना पड़ा है। छोटे चुनाव में पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन बड़े चुनाव में कांग्रेस को भी नुकसान उठाना पड़ा। वहीं भाजपा में धड़ेबाजी हावी होने का ज्यादा नुकसान हुआ है। वर्ष 2014 के जिला प्रमुख चुनाव में भाजपा के 29 जिला परिषद चुनकर आए तथा एक अन्य जिला परिषद का भी उसे समर्थन प्राप्त था, लेकिन अलवर की राजनीति की धड़ेबाजी के कारण कांग्रेस कम जिला परिषद सदस्य होने के बावजूद एक वोट से अपना जिला प्रमुख निर्वाचित कराने में कामयाब रही। जबकि भाजपा के पास बहुमत होने के बाद भी 24 वोट ही रह गए। इसी तरह 2009 में भी भाजपा के पास पर्याप्त जिला परिषद सदस्य होने के बाद भी कांग्रेस जिला प्रमुख बनवाने में सफल रही। वर्तमान में भी अलवर की राजनीति में धड़ेबाजी कम नहीं है, इंतजार है तो इतना कि यह धड़ेबाजी इस बार क्या नया गुल खिलाएगी?

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