अब तो डर लगता है घर में ठहरना
बाहर का समाज मुझे जंगल लगता है
घर का आंगन भी अब श्मशान लगता है
घर और बाहर मैं ही तो निशाने पर हूँ
लालची नजरें के हर वक्त पैमाने पर हूँ
रंज है गर तो बस इस बात का
कन्या पूजन का ढिंढोरा किस बात का
फब्तियों से दो चार होना पड़ता है जलील इस तरह हर बार होना पड़ता है
रुह मेरा इस बदन से छुटकारा चाहती है
जालिम यातनाओं पर मरहम चाहती है
गर कोई मौला ए चश्म है
जो टूटे बदन से, रूह को जोड़ दे
दर्द बिलबिला रहा है अंदर
कोई इस दर्द को निचोड़ दे
बेटी का तो जन्म लेना ही पाप है
बेटियाँ पाली जाती है, पोषी जाती है
भेड़ियों सम्मुख परोसी जाती हैं
वो नोचता है उसकी अस्मत और वसन
रक्षाबंधन पर रक्षा करने का जिसने दिया वचन
जब रक्षक ही भक्षक बना हो कौन बचावनहार
सरे बाज़ार हो गई मेरी इज्जत तार तार
अब भी संभलो, मुझे बचा लो
इंसानियत में मुझे छुपा लो
देवी स्वरूप हूँ , मां का ही रूप हूँ
चाँद की शीतलता सर्दी की धूप हूँ
हिफाजत हो काली बरसात से
कोई मां के आँचल में सिकोड़ दे
दर्द बिलबिला रहा है अंदर
कोई इस दर्द को निचोड़ दे