प्रशासन प्राकृतिक आपदा से निपटने में पूरी तरह से नाकाम रहा है। क्योंकि अधिकारियों को जनता पीड़ा समझ में ही नहीं आती। उन्हें तो अपने समारोह मनाने से ही फुर्सत नहीं मिल रही है। ये तो नेताओं के इशारे पर ही काम करते हैं।
अविनाश विजय, लादिया मोहल्ला
अधिकारियों का आना जाना चलता रहताा है। यह सतत प्रक्रिया है लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए जिला कलक्टर को जनता के बीच रहकर काम करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे साफ जाहिर है कि गंभीर विषयों को बहुत हलके में लिया जाता है।
विजय गुप्ता, निजी चिकित्सक, अलकापुरी
वर्षों बाद इतने भयानक हालात देखने को मिले हैं। पहले के अधिकारियों के लिए काम जरुरी होता था। वे जनता की सेवा के लिए हर समय उपलब्ध रहते थे। पहले बिजली नहीं थी तो हमें उसी अनुसार जीने की आदत थी। लेकिन अब बिजली व पानी के बिना रहना संभव नहीं हैं।
श्याम सुंदर शर्मा, प्राइवेटकर्मी, बस स्टैंड
जो अधिकारी जनता की समस्या नहीं सुन सकते उनको पद पर बने रहने का कोई हक नहीं। ऐसे मुश्किल हालात बहुत कम होते हैं। पार्टी बाद में भी हो सकती थी। जनता की कोई सुनने वाला नहीं है।
रामकिशन सोनी, सर्राफा व्यापारी, बजाजा बाजार
अखबार पढऩे पर ही पता चला कि जिला कलक्टर व अन्य अधिकारी विदाई व स्वागत पार्टी में व्यस्त थे। इससे साफ जाहिर है कि जनता की परेशानी से कोई लेना देना नहीं है। हमारे यहां आपदा राहत के कोई इंतजाम नहीं थे क्योंकि अधिकारियों का इस ओर
ध्यान ही नहीं गया।
सविता खंडेलवाल, एनईबी हाउसिंग बोर्ड हालात संभल रहे हैं। मुश्किल दौर में हर आदमी एक दूसरे की मदद कर रहा है। लेकिन कलक्ट्रेट में विदाई समारोह करना जरुरी नहीं था। हम तो परेशान हैं कलक्टर गुलाब जामुन की पार्टी कर रहे हैं। यह जनता के साथ अन्याय है।
इरशाद खान, ट्रांसपोर्ट नगर
चार दिन बीतने के बाद हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं क्योंकि अधिकारी संजीदगी से काम नहीं कर रहे हैं। कर्मचारी दिन रात मेहनत कर रहे हैं। अधिकारियों को पार्टी मनाने से फुर्सत नहीं मिल रही है। अधिकारी काम नहीं करना चाहते।
सीताराम गुप्ता, व्यवसायी
हमारे प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसे आयोजन से सबक लेना चाहिए। स्वागत और विदाई यदि नहीं होती तो कोई परेशानी की नहीं थी। अधिकारियों का सबसे पहला कर्तव्य था कि वह जनता की सुध लेते और जिले में बिजली, पानी की व्यवस्था को तत्काल रूप से दुरूस्त करने का काम करते।
विकास सैनी, स्कीम नंबर 5