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अलवर

भृर्तहरि का मेला आज से, तैयारियां पूरी : आस्था का केंद्र हैं पांडूपोल व भर्तृहरि मेला

लक्खी मेलों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। दोनों मेले इस बार एक साथ होने से प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए हैं।

अलवरAug 27, 2017 / 12:54 pm

Rajiv Goyal

Bharatharri fair from today

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नारायणपुर. मालाखेड़ा. अलवर.

देश के एेतिहासिक धार्मिक स्थलों में शुमार पांडूपोल हनुमान मंदिर व लोक देवता भर्तृहरि की अलवर जिला ही नहीं दूर प्रदेशों तक मान्यता है। यही वजह है कि अलवर को तपोभूमि के नाम से जाना जाता है। हर साल यहां जुडऩे वाले लक्खी मेलों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। दोनों मेले इस बार एक साथ होने से प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए हैं। यहां पर अतिरिक्त पुलिस जाप्ता लगाया गया है, चौकियां बनाई गई हैं। अस्थाई दुकानें बनाई गई हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए सीसी टीवी कैमरे लगाए गए हैं।
लोक देवता भृर्तहरि बाबा का लक्खी मेला रविवार से शुरू होगा। इसका उद्घाटन प्रात: १० बजे महंत बैंतनाथ करेंगे तथा इसका समापन ३० अगस्त को होगा। मेले की तैयारियां पूर्ण हो चुकी हंै।

इसके लिए प्रशासन ने जगह-जगह अस्थाई विद्युत ट्रांसफॉर्मर लगाए हंै। मेले में श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु दण्डौती लगाते डीजे की धुन पर नाचते गाते भर्तृहरि धाम पहुंच रहे हैं। शनिवार को एडीएम सिटी महेन्द्र मीणा, सीओ ग्रामीण सांवर मल नागौरा एवं तहसीलदार मालाखेड़ा ने मेला स्थल का दौराकर स्थिति का जायजा लिया।
पांडूपोल व भर्तृहरि का धार्मिक महत्व


उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि ने राजपाट छोड़कर भर्तृहरि में तपस्या की थी। इस कारण ही अलवर जिले को तपोभूमि कहा जाता है। महाभारत काल में अज्ञात वास के दौरान पांडव पुत्रों ने पांडूपोल को अपनी शरण स्थली बनाया और अज्ञात वास का समय यहां गुजारा। बाबा भर्तृहरि को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है और पांडूपोल हनुमान मंदिर एेतिहासिक होने के कारण यहां धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है।
साल भर यहां पर श्रद्धालुओं के आने जाने का सिलसिला चलता रहता है। भक्तों की मनोकामना पूरी होती है तो यहां सवामणी आदि अनेक धार्मिक आयेाजन किए जाते हैं। प्रत्येक शनिवार व मंगलवार को पांडूपोल में बड़ी संख्या में भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। लेकिन भाद्रपद मास के दौरान यहां लगने वाले मेले में भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है।
गदा के प्रहार से बनाया था रास्ता ……


किवदंती है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों ने तत्कालीन मत्स्य देश के जंगलों में समय बिताया। कौरवों को जब पाण्डु पुत्रों के मत्स्य देश के जंगलों में छुपे होने की जानकारी की खबर मिली तो पाण्डवों ने अज्ञातवास भंग कर यहां से निकलने का निर्णय लिया। लेकिन पांडव जिस रास्ते से निकलने लगे उन्हें उस रास्ते पर कौरवों की मौजूदगी का पता चल गया था।
अब पाण्डवों के सामने सिर्फ एक मार्ग सुरक्षित था जिस पर विशाल अरावली पर्वत सीना ताने उनके मार्ग में बाधा बना खड़ा था। तब युद्धिष्ठर ने भीम को आदेश दिया कि तुम अपनी गदा से इस पहाड़ पर प्रहार कर रास्ते का निर्माण करो। भीम ने आदेश का पालन करते हुए बीना देरी के पहाड़ पर अपनी गदा से प्रहार किया और पहाड़ से सुरंग का निर्माण कर दिया। उसी सुरंग से होकर पाण्डव पाण्डुपोल से द्रोपती के साथ आगे बढ़ते चले गए। इसके बाद उन्होने अपने छिपने के भावी लक्ष्य को निर्धारित कर मत्स्य देश के राज विराट नगरी मे भेष बदलकर अज्ञातवास का बाकी समय बिताया था।
उमरी तिराहा पर बनाया पार्किग स्टैंड


पांडूपोल मेला भी २९ अगस्त को भरना है। मेला मजिस्ट्रेट कैलाश चन्द शर्मा ने बताया कि मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है पार्किंंग स्थल पहले की जगह उमरी तिराहा को ही बनाया गया है। उसके बाद यात्रियों को उमरी तिराहा से तीन किलोमीटर पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचना होगा। बरसाती नालों सहित दुर्घटना संबंधित जगह को चिह्नित कर वहां पाबंदी लगाने को वन विभाग को निर्देशित कर दिया गया है।
29 को रहेगा सार्वजनिक अवकाश


जिला प्रशासन की ओर से २९ अगस्त को पांडूपोल मेले के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। जिसके चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के मेले में पहुंचने की उम्मीद है।
पोल पर जाने पर है प्रतिबंध


महाभारत काल में भीम की गदा के प्रहार से बनी सुरंग आज भी मौजूद है। इसे पाण्डुपोल के नाम से जाना जाता है। लेकिन पोल तक जाने वाला रास्ता जर्जर होने के कारण बारिश के दौरान पानी का तेज बहाव क्षेत्र होने के बचने की जगह नही होने से हादसे हो चूके है। जिसके बाद मेले के दौरान पोल पर जाने के लिए प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
भर्तृहरि व पाण्डूपोल मेले में रोडवेज १०५ बसें चलाएगा। बसों की संख्या यात्रीभार के अनुसार घट-बढ़ भी सकती है। मेले के लिए बसों का संचालन वैसे तो शुरू हो जाएगा। अधिकृत रूप से संचालन रविवार से शुरू होगा।
रमेशचंद शर्मा, मुख्य प्रबंधक अलवर आगार

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