बाल मजदूरी में खत्म हो रहा बचपन
अलवर•Nov 14, 2019 / 02:29 am•
Pradeep
बाल मजदूरी में खत्म हो रहा बचपन
अलवर/मांढण (माजरीकलां). इंसान के लिए बचपन उसकी जिंदगी का सबसे नायाब पल होता है। बचपन में न किसी जिम्मेदारी का झंझट और न कोई चिंता रहती है, लेकिन कई मासूम ऐसे है जो खेलने कूदने की उम्र में बाल श्रम करने को मजबूर
है ।
ये बच्चे होटल,ढाबे, ठेलियों में काम करते और भींख मांगते आसानी से देखे जा सकते है। 14 नवंबर को हर साल बाल दिवस मनाया जाता है व बालश्रम रोकने के लिए प्रसासन की और से लाख दावे किए जाते है, लेकिन हकीकत बाल दिवस के दिन ही होटल व ढाबों पर काम करते बच्चों से नजर आ जाते हैं। लेकिन फिर भी जिम्मेदार अधिकारी इस और आंखें बंद रखते है और बाल श्रम गंभीर समस्या बनता जा रहा है। परिवार की खराब हालत या अन्य कारणों से छोटी उम्र में ही बच्चे श्रम में जुट रहे है। कोई ढाबे में बर्तन धो रहा है तो कोई होटल में पानी और खाना ग्राहकों तक पहुंचा रहा है। इसके अलावा बच्चे वाहन मेकेनिक ,खाने की ठेली, गाड़ी धोने, वाहनों में हवा भरने व कूड़ा बीनता हुआ आसानी से देखा जा सकता है इन बच्चों की चिंता पढाई की नही बल्कि मेहनताने को लेकर रहती है राजस्थान पत्रिका ने बुधवार को जब मांढण कस्बे सहित क्षेत्र में जब काम करते हुए बच्चो से उनकी मजबूरी जाननी चाही तो कोई तो बिना कुछ बोले काम में जुटे रहे और कुछ ने मजबूरियां साझा की।
माजरीकलां के पास ईंट भटे काम कर रहे है। एक बच्चे ने बताया कि वह बिहार का रहने वाला है परिवार की माली हालत अच्छी नहीं होने की वजह से वह ईंट भटे पर काम करता है। उसके माता पिता भी ईंटभटे पर ही कार्य करते है और वो भी उनके कार्य में हाथ बटाता है। प्रतिदिन रहडी की मदद से दूर से पानी भरने का कार्य भी करता है। बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के पुलिस ,श्रम एवं प्रसासनिक प्रयास महज कागजी साबित हो रहे है।बस स्टैंड ,होटलों ढाबों,रहडियों पर बाल मजदूर कार्य कर रहे है हर कही मजदूरी कर रहे बच्चे शासन की योजनाओं को मुंह चिढ़ाते दिखाई दे रहे है।
भीख मांगने को
मजबूर
14नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रसासन की और से बाल मजदूरी रोकने के लिए दावे किए जाते है, लेकिन बाल दिवस के दिन ही होटलों,ढाबों व ईट भट्टों पर बाल मजदूर कार्य करते हुए नजर आ जाते है।
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