इस
मंदिर की स्थापना बाबा निर्भयदास जी ने की थी। निर्भयदास जी की समाधि भी यहां पर बनी हुई है। मंदिर के आगे पोल बनी हुई है जो कि प्राकृतिक रूप से पहाड़ काटकर बनाई गई है। ऐसी मान्यता है कि कौरवों ने जब इस जंगल को घेर लिया तो पांडू पुत्र भीम ने यहां से निकलने के लिए पहाड़ी पर गदा से वार कर यहां रास्ता बनाया और आगे निकल गए। अलवर सहित राजस्थान भर के भक्त यहां पर साल भर दर्शनों के लिए आते हैं। मन्नतें पूरी होने पर सवामणी आदि का आयोजन किया जाता है। स्वामी विवेकानंद भी फरवरी 1891 में यहां आए थे।
अलवर में पाण्डूपोल का लक्खी मेला प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। इसके साथ ही हनुमान जयंती पर भी यहां पर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में दर्शनों के लिए आते हैं। पांडूपोल का संबंध महाभारत काल से हैं। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां पर शरण ली थी। उसी दौरान जब भीम को अपनी
शक्ति का अहंकार हो गया था तो रामभक्त हनुमान ने उनके अहंकार को तोडऩे के लिए वानररूप धारण किया था। तभी से यहां पर हनुमानजी की प्रतिमा वानररूप में विराजमान है।
अलवर शहर में ये है प्रमुख हनुमान मंदिर इसके अलावा शहर में हनुमानजी के अनेक मंदिर हैं। इनमें प्रमुख रूप से चक्रधारी हनुमान मंदिर, तोपवाले हनुमानजी, अकबरपुर वाले हनुमानजी, मोती डूंगरी वाले हनुमानजी, बगीची वाले हनुमान, रामायणी हनुमान मंदिर, आड़ा-पाड़ा में दो हनुमान मंदिर, बीए पास हनुमान, चमत्कारी हनुमान मंदिर सहित गली है। भगवान राम, सीता वाले मंदिर में लक्ष्मणजी और हनुमानजी की प्रतिमाएं विराजमान है।
हाथ में चक्र होने से कहलाए चक्रधारी हनुमानजी
अरावली पर्वत शृंखलाओं के बीच अलवर के बाला किला के परकोटे में चक्रधारी हनुमान का मंदिर है। प्रतिमा के हाथ में चक्र होने के कारण इन्हें चक्रधारी हनुमान कहा जाता है। जिले का यह पहला मंदिर है जहां हनुमान के हाथ में गदा के स्थान पर चक्र है।