नीमराणा स्टेट की होली महल से शुरू होती थी और पूरे विधि-विधान व मंत्रोच्चारण के साथ होली दहन किया जाता था। इसी की आग से स्टेट के अन्य जगह होली भी मंगला करती थी। यह यहां की विशेषता थी। धुलंडी एक दिन पहले पूरे दिन यहां राज दरबार के प्रांगण में होली खेली जाती थी व धुलंडी के दिन महल (अब नीमरणा फोर्ट) में बने होली कुण्ड में चिलू व टेसू के फूलों के खुशबूदार पानी से भरकर उससे होली खेलते थे।
सभी वर्ग के लोग होते थे शामिल बताते हैं कि राजा के मणिहारे आलादरेज से निर्मित चपड़ी के गोलगप्पेनुमा गोलों में इस रंगीन पानी को भरकर रानी व राज दरबारियों से होली खेलते थे, जिसमें राज दरबार के लोगों के अलावा अन्य कोई उपस्थित नहीं रहता था। बाद में राजा बैठकर इस दरबार की होली का भरपूर आनंद लेते थे। इसे खासा (शाही) होली कहते थे। इस अवसर पर ठंडाई व भांग का इतना जोर बताया कि थोड़ा सा इसका पान करने पर ही होली की मस्ती में रंग में दरबारी नशे में डूब जाते थे। यह भांग केसर, मावा सहित अन्य कई चीजों से घोट कर कई दिन पहले तैयार की जाती थी। इसके बाद राजा सजीले हाथी पर सवार होकर कुण्ड में तैयार किए रंगीन व खुशबूदार पानी को भैंसा गाड़ी में रखवाकर महल से निकल कर मुख्य बाजार से होते हुए अपनी प्रजा से होली खेलते थे, जिससे पूरा क्षेत्र सुगंधित हो जाता तथा रंग बदन से लगते ही लोग कस्तूरी मृग हो जाते थे। खास बात ये थी कि यहां की होली में सभी जाति के लोग सामूहिक रूप से शामिल होते थे। बाद में यह होली पूरा हुजूम होली खेलता हुआ विजय बाग में जाता। जहां लट्ठमार होली होती। ढप व चंग की थाप पर नाच गान करते।