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बेहद खास होती थी राजस्थान की इस रियासत की होली, हाथी पर बैठकर प्रजा संग होली खेलते थे महाराज

पुराने समय में राजा-महाराजाओं की होली बेहद ही खास होती थी, इसी तरह नीमराणा पैलेस में भी बड़ी खास होली मनाई जाती थी।

अलवरMar 02, 2018 / 06:13 pm

Prem Pathak

Holi of Neemran's palace was special in ancient time
फाल्गुन के यौवन में रंगों की मादकता मिल ही जाती थी जब नीमराणा स्टेट के राजा सजीले हाथी पर सवार होकर अपनी प्रजा संग होली खेलने निकलते और खेलते थे। उस समय होली का अलग ही रोमांच था, लेकिन अब होली के रंगों का माहौल बदल गया, जिसमें न वो मस्ती नजर आती और न वो प्रेम-सौहार्द। लोग उत्सवों से सिमटते जा रहे है। सामाजिक प्रेमभाव में भी बैर भाव की टीस ने होली रंगों को मटमैला कर दिया है। यहां के बुजर्ग बताते हैं कि आजादी से पहले यहां के राज दरबार की तरफ से मनाई जाने वाली होली के ठाठ अलग ही थे, जो आधी से ज्यादा सदी कालांतर सफर में क्षेत्र की होली भी प्रदूषित हो गई है।
नीमराणा स्टेट की होली महल से शुरू होती थी और पूरे विधि-विधान व मंत्रोच्चारण के साथ होली दहन किया जाता था। इसी की आग से स्टेट के अन्य जगह होली भी मंगला करती थी। यह यहां की विशेषता थी। धुलंडी एक दिन पहले पूरे दिन यहां राज दरबार के प्रांगण में होली खेली जाती थी व धुलंडी के दिन महल (अब नीमरणा फोर्ट) में बने होली कुण्ड में चिलू व टेसू के फूलों के खुशबूदार पानी से भरकर उससे होली खेलते थे।
सभी वर्ग के लोग होते थे शामिल

बताते हैं कि राजा के मणिहारे आलादरेज से निर्मित चपड़ी के गोलगप्पेनुमा गोलों में इस रंगीन पानी को भरकर रानी व राज दरबारियों से होली खेलते थे, जिसमें राज दरबार के लोगों के अलावा अन्य कोई उपस्थित नहीं रहता था। बाद में राजा बैठकर इस दरबार की होली का भरपूर आनंद लेते थे। इसे खासा (शाही) होली कहते थे। इस अवसर पर ठंडाई व भांग का इतना जोर बताया कि थोड़ा सा इसका पान करने पर ही होली की मस्ती में रंग में दरबारी नशे में डूब जाते थे। यह भांग केसर, मावा सहित अन्य कई चीजों से घोट कर कई दिन पहले तैयार की जाती थी। इसके बाद राजा सजीले हाथी पर सवार होकर कुण्ड में तैयार किए रंगीन व खुशबूदार पानी को भैंसा गाड़ी में रखवाकर महल से निकल कर मुख्य बाजार से होते हुए अपनी प्रजा से होली खेलते थे, जिससे पूरा क्षेत्र सुगंधित हो जाता तथा रंग बदन से लगते ही लोग कस्तूरी मृग हो जाते थे। खास बात ये थी कि यहां की होली में सभी जाति के लोग सामूहिक रूप से शामिल होते थे। बाद में यह होली पूरा हुजूम होली खेलता हुआ विजय बाग में जाता। जहां लट्ठमार होली होती। ढप व चंग की थाप पर नाच गान करते।

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