मत्स्यांचल एवं कृष्ण भक्ति का सम्बन्ध यहीं नहीं रुका, बल्कि स्टेट समय से लेकर अब तक यह परम्परा जारी है। भले ही कृष्ण भक्ति के स्वरूप में बदलाव आ गया हो, लेकिन अलवर के मत्स्यांचल में कृष्ण की भक्ति की परम्परा आज भी कायम है। अलवर पूर्व राजघराने के राजा- महाराजा ने कृष्ण भक्ति की परम्परा का न केवल निर्वहन किया, बल्कि उसे आगे बढ़ाया। उस दौरान कृष्ण जन्माष्टमी पर भजन संध्या, नृत्य संगीत व कृष्ण सज्जा जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता था। लोग कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत रखते थे तथा रात को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के बाद विधि विधान से व्रत खोलते थे।
स्वयं पूर्व महाराज भी राजघराने के मंदिरों में भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते थे तथा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन करते थे। मत्स्यांचल में सदियों से चली आ रही कृष्ण भक्ति की परम्परा वर्तमान में भी कायम है। अब भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव पर पूरे जिले में मंदिरों में भव्य सजावट होती है तथा भजन, कीर्तन, नृत्य संगीत के कार्यक्रम होते हैं। घरों में भी लोग व्रत रखकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं तथा रात को कृष्ण जन्मोत्सव मनाकर व्रत खोलते हैं। पूरे मत्स्यांचल में भी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की धूम रहती है।