चाहे
कोटा की
कचोरी हो, भरतपुर की या फिर
जोधपुर की कचौरी हर जगह की कचोरी का स्वाद कुछ खास होता है। शायद इसलिए अलवरवासियों के लिए यहंा बनने वाली कचौरी बेमिसाल है। इसे खाने के शौकीन ऐसे हैं कि दिन में एक बार जब तक इसका स्वाद चख ना ले उनका कुछ खाने में मन ही नहीं करता हेै। शहर के चौराहों पर सुबह सुबह बनने वाली गर्मागर्म कचौरियों की खुशबू ऐसी होती है कि चलते हुए लोगों के कदम रूक जाते हैं और कचौरी खाए बिना आगे नहीं बढ़ते।
अलवर शहर में होपसर्कस, पुलिस कंट्रोल रूम, अशोका टाकीज, काशीराम का चौराहा, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन,नंगली सर्किल, भगत सिंह, जेल का चौराहा शायद ही शहर की कोई जगह हो जहां हमें कचौरी की ठेलियां दिखाई ना दे। शहर के कचौरी विक्रेताओं ने बताया कि एक ही दिन में करीब 1 लाख से ज्यादा की कचौरियां बिक जाती है। इसमें एक कचौरी की कीमत लगभग दस रुपए से कम नहीं है। इससे अनुमान लगता है कि अलवर वासी एक ही दिन में करीब 10 लाख रुपए की कचौरियां खा जाते हैं।
हर संडे का स्पेशल नाश्ता है कचौरी संडे छुटटी का दिन होता है। सब घर में रहते हैं। इस दिन ब्रेकफास्ट भी कुछ स्पेशल होना चाहिए। इसलिए अधिकतर लोग संडे को कचौरी का ही नाश्ता करते हैं। इसके अलावा जब भी घर में मेहमान आते हैं तो सबसे पहले कचौरी का ही नाश्ता याद आता है। कुछ शौकीन तो ऐसे हैं कि कचौरी खाने सुबह सुबह ही दुकान पर पहुंच जाते हैं।
कचौरी का अलग अलग स्वाद अलवर में बनने वाली कचौरी विशेष तौर से मूंग की दाल से तैयार की जाती है। दोनों हाथों की हथेलियों के बीच में रखकर उसमें मसाला भरा जाता है, इसके बाद हाथ से दबाया जाता है, एक बड़ी कढ़ाही में तेल गर्म करके उसमें मध्यम आंच में कचौरियों को तला जाता है। अलवर में केवल मंूग की नहीं और भी कई तरह की कचौरियां बनने लगी है। इससे अलग अलग स्वाद चखने को मिलता है कहीं कचोरी के साथ सब्जी दी जाती है तो कहीं कढ़ी कचौरी, कहीं दही कचौरी बिकती है।
चार घंटे में बिक जाती है कचौरियां कचौरी बनाने वाले छगनलाल सैनी ने बताया कि कचौरी बनाना उन्होंने अपने बुजुर्गो से सीखा है। सुबह 6 बजे कचौरी की ठेली लगाते हैं और सुबह 11 बजे तक प्रतिदिन करीब 6000 कचौरियां बिक जाती हैं। सब्जी वाली कचौरी खूब बिकती है। होपसर्कस पर कचौरी बेचने वाले संजय गोयल ने बताया कि कचौरी की मांग इतनी ज्यादा है कि सारा परिवार कचौरी तैयार करने में लग जाता है इसके बाद भी शहरवासियों की पूर्ति कभी कभी नहीं हो पाती है। प्रतिदिन 7000 कचौरियां बनाते हैं और संडे को 9000 से ज्यादा कचौरियां बिक जाती है।