सन् 2012 में प्रायोगिक परीक्षाओं के नाम पर एक कॉलेज की एक कक्षा के विद्यार्थियों से पैसे जमा किए गए। इस मामले की शिकायत होने पर यह राशि जब्त कर ली गई। यह राशि एक लाख 3 हजार 600 रुपए थी जिसे किसी भी व्याख्याता ने अपनी तरफ से जमा करवाने की बात से इनकार किया। यह राशि कॉलेज प्रशासन ने जब्त कर लिफाफे को सीलबंद करके रख दिया गया। इस मामले में तत्कालीन प्राचार्य ने कॉलेज निदेशालय को लिखा लेकिन उन्होंने इस राशि के बारे में कोई निर्णय नहीं दिया। यही नहीं नोटबंदी के दौरान भी यह राशि तत्कालीन प्राचार्य डॉ. अनूप सक्सेना के कार्यकाल में जमा नहीं कराई गई। यह राशि विद्यार्थियों से एकत्रित की गई थी जिसे लेने विद्यार्थी भी नहीं आए। नोटबंदी से पहले नोट जमा कराने के कई अवसर दिए गए लेकिन कॉलेज प्रशासन ने इस राशि को नहीं बदलवाया। इसमें एक लाख रुपए की राशि 500 और एक हजार रुपए के नोट की थी।
इस मामले में कॉलेज निदेशालय से संयुक्त निदेशक के. के. गुप्ता अलवर आए और उन्होंने पांच सदस्यीय कमेटी के सामने यह लिफाफा खुलवाया। इस लिफाफे में एक लाख रुपए राशि के 500 और एक हजार रुपए के नोट थे। इसमें 100 रुपए के 36 नोट थे। संयुक्त निदेशक गुप्ता ने एक लाख रुपए के 500 और एक हजार रुपए के नोट बदलवाने के लिए रिजर्व बैंक के जयपुर स्थित कार्यालय को लिखने और वहां जाकर जमा कराने के निर्देश दिए। एक लाख रुपए की राशि के नोट बदले जाएंगे या नहीं, इसको लेकर कॉलेज प्रशासन संशय में है। इसका पता इस टीम को जयपुर जाकर लगेगा।
इस पांच सदस्यीय टीम में प्रिंसीपल बिमलेश गुप्ता, व्याख्याता अनिल जैन, उपेन्द्र सिंह सहित कैशियर व मंत्रालयिक कर्मचारी हैं। इस मामले में उस समय जांच भी की गई लेकिन यह नोट किसने जमा कराए, इसके बारे में जांच रिपोर्ट में भी नहीं बताया गया। कॉलेज शिक्षा के संयुक्त निदेशक के के गुप्ता ने बताया कि एक लाख रुपए की इस राशि को रिजर्व बैंक से अब भी बदलवाने के लिए प्रयास किए जाएंगे। इसके लिए रिजर्व बैंक से पत्राचार किया जा रहा है।