मान्यता है कि महाभारत काल में पाण्डव कौरवों से जुए में सबकुछ हार गए, तब उन्हें 13 वर्ष के लिए हस्तिनापुर छोडना पड़ा। इसमें पाण्डवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत करना था। अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों ने तत्कालीन मत्स्य देश के जंगलों को चुना। यहां के घने वन और कंदराओं में रहकर पाण्डवों ने समय व्यतीत किया। पानी, फल आदि की प्रचुर मात्रा के कारण पाण्डवों ने यह जगह चुनी। कौरवों को जब पाण्डव पुत्रों के मत्स्य देश के जंगलों में छुपे होने की जानकारी मिली तो उन्होने पाण्डवों का अज्ञातवास भंग करने के लिए जंगल की घेराबंदी शुरू कर दी। सरिस्का की घाटी व दर्रो में प्रवेश कर कौरव उनके करीब पहुंचने लगे। तभी पाण्डवों ने यहां से निकलने का निर्णय किया। पाण्डवों ने जिस सुरक्षित मार्ग को चुना, वहां अरावली पर्वत मार्ग में बाधा बन खडा था। कोई विकल्प नहीं मिलने पर युधिष्ठर ने भीम को गदा से पहाड़ के कंठ स्थल पर प्रहार कर रास्ता बनाने को कहा। इस पर भीम ने गदा से प्रहार कर पहाड़ में सुरंग का निर्माण किया।
मौजूद है महाभारत काल की सुरंग
इसी सुरंग से पाण्डव पाण्डूपोल से आगे बढ़े और मत्स्य देश के राज विराट नगरी मे भेष बदलकर अज्ञातवास का शेष समय बिताया। महाभारत काल में भीम की गदा के प्रहार से बनी सुरंग अभी मौजूद है। इसे पाण्डूपोल के नाम से जाना जाता है। लेकिन पोल तक जाने वाला रास्ता जर्जर होने तथा बारिश के दिनों में हादसे के चलते मेले के दौरान पोल पर लोगों के जाने पर प्रतिबंध रहता है।