अलवर लोकसभा उपचुनाव में ११ प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। मतदान में चार दिन शेष बचे हैं, लेकिन कुछ ही निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में प्रचार करते नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी को नामांकन भरने के लिए 25 हजार रुपए राशि की अमानत राशि जमा करानी होती है, जबकि अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए यह राशि 12 हजार 500 रुपए है।
पहचान बनाने के लिए चुनाव का चस्का तो आगामी चुनावोंं की तैयारी लोकसभा चुनाव में बहुत से प्रत्याशी निर्दलीय खड़े होकर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। चुनाव में प्रत्याशी बनने पर ऐसे प्रत्याशियों का नाम पूरे लोकसभा क्षेत्र तक सहज ही पहुंच जाता है। लोकसभा के मतदान केन्द्रों के बाहर सभी प्रत्याशियों के नाम और उनका चुनाव चिह्न कागज पर अंकित कर चस्पा किया जाता है। वतमान में बैलेट पेपर के स्थान पर ईवीएम में सभी प्रत्याशियों के नाम अंकित होते हैं। कई प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में अपना नाम प्रचारित होने पर अपने आपको गौरान्वित महसूस करते हैं। बहुत से प्रत्याशी नाम के लिए चुनाव मैदान में उतरते हैं। कई बार प्रमुख राजनीतिक दल मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए प्रतिद्वंदी प्रत्याशी के नाम से डमी उम्मीदवार खड़ा करते हैं। कई बार निर्दलीय प्रत्याशी वोट काटू भी साबित होते हैं। अलवर में कई ऐसे नेता हैं जो पहले निर्दलीय चुनाव लड़े और
उन्होंने भारी संख्या में वोट लेकर भी जीत नहीं सके। इन्हें बाद में टिकट मिला और बाद में वे मंत्री तक बने। एक निर्दलीय प्रत्याशी ने बताया कि वे तीन वाहन एक साथ लेकर चुनाव प्रचार कर सकते हैं। लोकसभा चुनाव में हम किसी भी मतदान केन्द्र पर जाकर निरीक्षण कर सकते हैं और नए-नए लोगों से मिलना होता है। इसी प्रकार कई बार चुनाव मैदान से हटने के लिए कई बार बड़े नेता उनसे सम्पर्क करते हैं जिसके कारण वे नामांकन भरने को उपयोगी मानते हैं।
नोटा की भूमिका को लेकर संशय अब तक लोकसभा उप चुनाव मेंं नोटा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाया है। अलवर में समता आंदोलन से जुड़े हुए लोग नोटा का प्रचार कार्यालय खोलने के लिए प्रशासन से अनुमति मांग रहे हैं लेकिन निर्वाचन आयोग ने उन्हें अनुमति नहीं दी है। इनका कहना है कि जिला प्रशासन को आम आदमी के बीच नोटा का प्रचार करना चाहिए। नोटा का अर्थ वोट डालने से नहीं बल्कि इन प्रत्याशियों में से कोई नहीं है।