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अलवर उपचुनाव: बड़े वोट बैंक ने दिलाया टिकट, जानें अब क्या रहेगी छोटे वोट बैंक की भूमिका

अलवर लोकसभा उपचुनावों मे यादव वोट बैंक के कारण दानों प्रत्याशी यादव समाज के हैं, आइए जानते हैं छोटे वोट बैंक की क्या रहेगी भूमिका।

अलवरJan 20, 2018 / 02:12 pm

Prem Pathak

role of small vote bank in alwar loksabha election
अलवर. लोकसभा उपचुनाव में जिले के बड़े वोट बैंक ने भले ही टिकट के लिए प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की राह आसान कर दी हो, लेकिन संसद तक के सफर तय करने में छोटे वोट बैंक की भूमिका अब निर्णायक होने लगी है। यही कारण है कि मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, राजनीतिक दल छोटे वोट बैंक को गोलबंद करने की जुगत में लग गए हैं।
लोकसभा क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों में 18 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें करीब आधे वोट तीन बड़े वोट बैंक अनुसूचित जाति, अहीर व मेव वर्ग से जुड़े हैं। वहीं करीब आधे वोट शेष वर्ग के छोटे वोट बैंक में बिखरा है। तीन बड़े वोट बैंक पर प्रमुख दलों के प्रत्याशियों की नजर है। वहीं अहीर वर्ग से दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी होने से वोटों का विभाजन होने की संभावना है। अनसूचित जाति वर्ग के वोट बैंक में बिखराव संभव माना जा रहा है। ऐसे में छोटे वोट बैंक प्रत्याशियों की हार-जीत की राह तय करने वाले साबित हो सकते हैं।
छोटे वोट बैंक को लुभाने को डाल रहे डोरे

लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, वैश्य, माली, गुर्जर, जाट, मीणा, प्रजापति सहित दर्जनभर से ज्यादा छोटे वोट बैंक हैं। इन वर्गों के वोटों की संख्या लोकसभा क्षेत्र के कुल वोटों में आधे से ज्यादा है। ऐसे में हार-जीत के सफर और जीत-हार का दायरा बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल इन वोट बैंक को लुभाने में जुटा है। इसके लिए प्रमुख राजनीतिक दल इन वर्गों के बड़े नेताओं के दौरे करा वोट बैंक में सेंधमारी के प्रयास में जुट गए हैं। यही कारण है कि भाजपा व कांग्रेस के इन वर्गों से जुड़े दर्जनों नेता, विधायक, मंत्री इन दिनों अलवर लोकसभा क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं।
दिग्गज नेताओं के कार्यक्रम भी वोट बैंक देखकर ही प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से उपचुनाव के लिए अपने-अपने दिग्गज नेताओं के दौरे वोट बैंक की ताकत देखकर ही तय किए जा रहे हैं। उपचुनाव के मतदान में करीब 9 दिन और प्रचार कार्य के लिए एक सप्ताह का समय बचा है। ऐसे में दोनों ही प्रमुख दल छोटे वोट बैंक को अपनी ओर लुभाने के लिए इन्हीं वर्गों के प्रभावकारी नेताओं के दौरे तय कराने में जुट गए हैं।
जातीय राजनीति से कोई अछूता नहीं

राजनीति में जाति, वर्ग को अभिशाप बताने के बावजूद उपचुनाव की राजनीति में कोई दल व प्रत्याशी जातीय आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण में कसर नहीं छोड़ रहा। उपचुनाव के टिकट वितरण से लेकर मतदान तक जातीय राजनीति हावी दिखाई दे रही है।

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