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अलवर

विस्थापन की धीमी गति ने रोकी सरिस्का की खुशहाली

सरिस्का के कोर एवं पैराफेरी क्षेत्र में बसे गांवों की धीमी विस्थापन प्रक्रिया ने टाइगर रिजर्व की खुशहाली पर ही ब्रेक नहीं लगाए, बल्कि बाघों की वंश वृद्धि को भी प्रभावित किया है। रणथंभौर की तुलना में सरिस्का में मानवीय दखल ज्यादा होने का असर वन्यजीवों पर भी पड़ा है।

अलवरOct 25, 2021 / 12:01 am

Prem Pathak

विस्थापन की धीमी गति ने रोकी सरिस्का की खुशहाली

विस्थापन की धीमी गति ने रोकी सरिस्का की खुशहाली

प्रेम पाठक
अलवर. सरिस्का के कोर एवं पैराफेरी क्षेत्र में बसे गांवों की धीमी विस्थापन प्रक्रिया ने टाइगर रिजर्व की खुशहाली पर ही ब्रेक नहीं लगाए, बल्कि बाघों की वंश वृद्धि को भी प्रभावित किया है। रणथंभौर की तुलना में सरिस्का में मानवीय दखल ज्यादा होने का असर वन्यजीवों पर भी पड़ा है।
सरिस्का बाघ परियोजना के कोर एरिया एवं पैराफेरी में करीब 29 गांव बसे हैं, इनमें से 10 गांवों का विस्थापन सरकार की प्राथमिकता में है। एक दशक से ज्यादा समय से सरिस्का में गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया चलने के बाद भी अभी तक पांच गांव ही पूरी तरह विस्थापित हो पाए हैं। शेष पांच गांवों में कुछ परिवार विस्थापन के लिए सहमत हैं, लेकिन अभी विस्थापित नहीं हो सके हैं।
गांवों से जंगल में बढ़ती है मानवीय दखल
गांवों के बसे होने से जंगल में मानवीय दखल बढ़ती है। इसका सीधा असर बाघ एवं अन्य वन्यजीवों की वंश वृद्धि पर पड़ता है। मानवीय दखल के चलते बाघ एवं अन्य वन्यजीव दूर चले जाते हैं, जिससे ब्रीडिंग में बाधा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि सरिस्का में अभी बाघों का कुनबा 23 तक ही पहुंच पाया है, जबकि रणथंभौर में बाधों की संख्या 70 के पार है। कारण है कि रणथंभौर में ज्यादातर गांवों का विस्थापन होने से वहां मानवीय दखल काफी कम है, जबकि सरिस्का में गांवों का विस्थापन अभी पूरी तरह नहीं हो पाया है, जिसके चलते यहां मानवीय दखल ज्यादा है।
सरिस्का के बीच से गुजरने वाला रोड भी कारण

सरिस्का बाघ परियोजना के बीच से अलवर- जयपुर स्टेट हाइवे गुजरता है। यहां रोडवेज बसों समेत हल्के चार पहिया और दो पहिया वाहन बड़ी संख्या में गुजरते हैं। दिन रात वाहनों की आवाजाही के शोर से बाघ दूर क्षेत्रों में जाने को मजबूर होते हैं। पूर्व में इस रोड पर वाहनों की आवाजाही पर रोक के आदेश भी हुए, लेकिन लोगों के विरोध के चलते वाहनों की आवाजाही पूरी तरह बंद नहीं हो सकी। साथ ही मंगलवार व शनिवार को धार्मिक पर्यटन को छूट के चलते सैंकड़ों की संख्या में वाहन और कई हजार लोगों की सरिस्का में मौजूदगी रहती है, इसके चलते वन्यजीव सरिस्का-पाण्डुपोल रोड को छोड़ दूर चले जाते हैं।
विस्थापन में यह है बाधा
सरिस्का में गांवों के विस्थापन में कई बाधाओं का वन अधिकारियों को सामना करना पड़ रहा है। इनमें सबसे बड़ी समस्या गांवों में बसे परिवारों का पुराना सर्वे है। करीब एक दशक पूर्व हुए सर्वे के बाद वहां बसे परिवारों की स्थिति बदल चुकी है। सर्वे हुए काफी समय बीतने के कारण एक परिवार के सदस्यों की उम्र बढऩे से कई परिवार हो गए। अब यहां बसे लोग नए परिवारों को अलग से पैकेज देने की मांग कर रहे हैं। हालांकि सरिस्का प्रशासन गांवों में बसे परिवारों को विस्थापन के लिए सहमत करने में जुटे हैं।
सरिस्का की खुशहाली में यह है बाधा

गांवों के विस्थापन का सरिस्का की खुशहाली से सीधा जुड़ाव है। गांवों का विस्थापन होने से सरिस्का में मानवीय दखल कम होगी, जिससे बाघों की वंश वृद्धि तेजी से हो सकेगी। कुनबा बढऩे से सरिस्का में बाघों की साइटिंग ज्यादा होगी, जिससे पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। इससे सरिस्का की राजस्व में वृद्धि होगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार भी विकसित होंगे।
विस्थापन प्रक्रिया की प्रगति रिपोर्ट

ग्राम कुल परिवार सहमत परिवार विस्थापित परिवार प्रगतिरत विस्थापन से शेष परिवार

भगानी 21 21 21 — —-
रोटक्याला 50 50 50 — —-

उमरी 92 92 92 — —-
पानीढाल 24 24 24 — —-
डाबली 132 132 132 — —-
सुकोला 63 41 41 — 22

काकवाड़ी 171 143 143 — 28
क्रास्का 206 164 125 39 42

हरिपुरा 78 54 46 08 24
देवरी 181 88 84 04 93
योग 1018 809 758 51 209

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