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सरिस्का में बाघ बाघिन के गायब होने की प्रमुख वजह यह, आखिर जागा सरिस्का प्रशासन

सस्ते को छोड महंगा लगाने की कवायद शुरू, बाघिन एसटी-9 को लगाई रेडियो कॉलर

अलवरMay 14, 2018 / 11:04 am

Prem Pathak

Sariska tiger : change radio equipment
अलवर . सरिस्का बाघ परियोजना में मौजूद बाघ-बाघिनों के अब जीपीएस रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे। इस कड़ी में रविवार दोपहर बाघिन एसटी-9 को ट्रंक्यूलाइज कर जीपीएस रेडियो कॉलर लगाई। यह बाघिन पूर्व में सुरुण्डा आदि सरिस्का में दूर दराज तक पहुंच चुकी है। सरिस्का में वर्तमान में बाघों का कुनबा 14 है, इनमें दो शावक शामिल है। शेष 12 बाघों में से आधे टाइगरों को फिलहाल वीएचएफ रेडियो कॉलर लगे हैं। इनमें से भी ज्यादा फिलहाल खराब हालत में है। इस कारण वनकर्मियों को बाघों की मॉनिटरिंग में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
सरिस्का के डीएफओ बालाजी करी ने बताया कि बाघिन एसटी-9 को जीपीएस रेडियो कॉलर लगाया गया है। रेडियो कॉलर लगाने के कुछ देर बाद बाघिन खड़ी होकर पास ही स्थित वाटर हॉल्स पर गई और पानी पीकर वहीं बैठ गई। कुछ देर बाद वह चली गई। बाघिन पूरी तरह स्वस्थ है।
जीपीएस कॉलर से पता चलेगा बाघ कहां है

जीपीएस रेडियो कॉलर लगाने का लाभ यह होगा कि मॉनिटरिंग टीम को बाघ की हर पल की गतिविधि का पता चल सकेगा। जीपीएस के माध्यम से मॉनिटरिंग टीम पता लगा सकेगी कि बाघ की लोकेशन कहां है और वह किस हाल में है।
एसटी-5 के गुम होने व एसटी-11 की मौत के बाद किया निर्णय
सरिस्का में बाघिन एसटी-5 के गायब होने एवं बाघ एसटी-11 की मौत के बाद स्टैंडिंग कमेटी एवं सरकार ने सभी बाघों के जीपीएस रेडियो कॉलर लगाने का निर्णय किया था। उल्लेखनीय है कि बाघिन एसटी-5 व बाघ एसटी-11 के यदि जीपीएस कॉलर लगा होता तो संभवत: वह इन दिनों सरिस्का की शोभा बढ़ा रहे होते।
सरिस्का में बाघों के रेडियो कॉलर नहीं होने या फिर खराब होने का नुकसान यह हुआ कि कई बार बाघ- बाघिन कई दिनों के लिए गायब हो जाते हैं। इससे सरिस्का प्रशासन को बाघों को ढूंढने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। पूर्व में सरिस्का में टाइगर एसटी-8, एसटी-5, एसटी-4, एसटी-9, एसटी-13, एसटी-14 समेत कई अन्य बाघ कई दिनों तक मॉनिटरिंग टीम से ओझल रहे। हालांकि एसटी-5 को छोडकऱ शेष बाघ कुछ दिनों की मशक्कत के बाद कैमरा ट्रैप, पगमार्क या साइटिंग से मिल गए।
जीपीएस रेडियो कॉलर महंगा है, वर्तमान में इस कॉलर की कीमत करीब 5 लाख रुपए है, जबकि वीएचएफ कॉलर लगभग एक लाख रुपए में उपलब्ध है। यही कारण है कि पूर्व में ज्यादातर बाघों के वीएचएफ कॉलर लगे थे।

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