जबकि जनप्रतिनिधियों का कहना है कि अलवर शहर में सफाई का स्तर काफी सुधर गया है। लेकिन स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए आने वाली टीम को सही फीडबैक नहीं दिया जा रहा है। जिसके कारण बार-बार अलवर की रैंक आगे आने की बजाय पीछे जा रही है।
डोर टू डोर भी अधूरा सफाई के स्वच्छता सर्वेक्षण का मतलब केवल कचरा उठाने मात्र से नहीं है। बल्कि चौतरफा सुधार को देखा जाता है। अलवर शहर को खुल में शौच से मुक्त करने के बावजूद भी कई जगहों पर सुबह-शाम खुले में शौच जाने वालों की लाइनें मिलती है। ऐसे में बेहतर रैंक की उम्मीद करना बेमानी है। इसी तरह शहर के अधिकतर नाले कचरे से अटे पडे रहते हैं। नालों में पशु मरे मिलते है। पूरे शहर में लावारिश पशुओं के झुण्ड दिखते हैं। जिनका शौच भी सडक़ों पर पड़ा सड़ता है। पॉलीथिन का दुरुपयोग रोका नहीं जा रहा है। जो नालों को जाम कर पूरे शहर में गंदगी फैला रहे हैं।
डोर टू डोर कचरा संग्रहण का कार्य शुरू हो गया। लेकिन अभी औपचारिकता ज्यादा हो रही है। कुछ जगहों से नियमित कचरा लिया जाने लगा है। सब घरों का कचरा संग्रहण नहीं होने के कारण अभी भी कचरा सडक़ों पर फेंका जा रहा है। कचरा पात्र सभी खराब हैं। आए दिन कचरा जलता रहता है। अम्बेडकर नगर की हालत देख ली जाए तो स्वच्छता सर्वेक्षण की टीम ही दंग रह जाएगी। यहां सैकड़ों बीघा में पॉलीथिन व कचरा फैला हुआ है। ऐसे में स्वच्छ शहर व अच्छी रैंक की उम्मीद करना बेकार है।