चुल्लू भर पानी
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष चून
किसी समय में राजस्थान में सबसे सरसब्ज क्षेत्र माने जाने वाले अलवर में 12 मास भरपूर पानी रहता था। आज हालत ये है कि सुबह से शाम तक लोग नलों की ओर ताकते रहते हैं। पानी अब आया कि अब आया। पानी के लिए रतजगे हो रहे हैं। जलदाय विभाग का घेराव होता है। मटका फोड़ प्रदर्शन हो रहे हैं। कहीं रास्ते रोके जा रहे हैं। कहीं पड़ोसियों में खटपट हो रही है। हर जगह टैंकर माफिया के सामने आम आदमी नतमस्तक हो रहा है। जिम्मेदार इस समय मौन हैं। या यूं कहें कि खुद के घर पर आ रही पानी की भरपूर धार को देखकर मुगालते में हैं। उन्हें लगता है कि सबकुछ ठीकठाक है। जबकि पेयजल संकट से आमजन बेहाल हैं। बात गर्मी की होती तो इसे कुछ दिनों का संकट समझ कर चुप रह जाते। पर यहां तो सर्दियों में भी महिलाओं को पीने के पानी के लिए सड़क पर उतरना पड़ा था। साल भर पेयजल की किल्लत। किसान की हालत क्या होगी? इतने बड़े जिले के लिए पेयजल की कोई ठोस योजना आज दिन तक जमीन पर नहीं उतर पाई है। चुनावों में यहां चंबल का पानी लाने के सब्जबाग दिखाए जाते हैं। जबकि हकीकत में हैंडपंप भी सूख चुके हैं। चंबल के नाम पर कभी डीपीआर बनाने के छल किए जाते हैं तो कभी चुनावों में लच्छेदार भाषण देकर मृग मरिचिका दिखाई जाती है। धरातल पर कुछ भी नहीं होता है। पानी जो जीवन का आधार है। वह हमसे दूर होता जा रहा है। रसूखदारों को किसी बात की कमी नहीं है। कई करोड़पतियों का तो धंधा ही पानी से चल रहा है। डार्कजोन में बेधड़क बोरिंग किए जा रहे हैं।
जयपुर रोड पर एक यूनिट पर तो दर्जनों बोरिंग किए जा रहे हैं। दिनरात अलवर की धरती से रहा सहा पानी खींचकर धंधा किया जा रहा है। जबकि अन्नदाता के लिए बोरिंग संभव नहीं है। एनसीआर प्रोजक्ट के तहत आई करोड़ों की राशि से पाइप खरीद लिए गए हैं। वे कंडम होते जा रहे हैं लेकिन शहर के लिए सिलीसेढ़ का पानी आज दिन तक नहीं आ सका। यह
ध्यान रहे कि समस्या जलदाय विभाग की नहीं बल्कि अलवर की उपेक्षा की है। यहां इतनी बड़ी आबादी के लिए प्रशासन की ओर से अब तक क्या प्रबंध किए गए हैं? किसी को नहीं मालूम। असल में पेयजल समस्या के समधान के लिए कोई प्रयास नहीं दिख रहा है। कभी भी जिले के सभी जनप्रतिनिधि, अधिकारी एक जाजम पर बैठकर समस्या समाधान के लिए चर्चा नहीं कर पाए हैं। एक बार भी सबने एक स्वर से सरकार से किसी बड़ी योजना की मांग नहीं की है। यमुना और चंबल का ही जल क्यों? वहां से पानी आएगा तब आएगा। उससे पहले जिले के बांधों, ताल तलैयों को अतिक्रमण से मुक्त कर गांव, ढाणी के आस-पास भी जल संरचनाओं को जाग्रत किया जा सकता है। कुछ साल पहले रूपारेल नदी में जो प्रयोग किया गया था वह सबके सामने है। साहबी नदी को ही यदि अतिक्रमण से मुुक्त कर दें तो जिले के लिए यह जीवनदायनी साबित हो सकती है। इसके लिए इच्छा
शक्ति की दरकार है। जनता को भी यह समझना होगा कि पानी सबके लिए है। इसकी एक-एक बूंद अमूल्य है। इसे सहेजना होगा। पानी की बर्बादी रोकनी होगी। हर व्यक्ति को इसकी शुरुआत खुद से ही करनी होगी। यही असली जल स्वावलंबन होगा। नहीं तो चुल्लू भर पानी… वाली कहावत सबके लिए है।