हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे को अदालत से बाहर आपसी सुलह समझौते से निपटाने के लिए पूरा समय दिया, लेकिन दोनों पक्षों के मध्य सुलह की कोई गुंजाइश बंटी नहीं दिखाई पड़ रही है। दोनों में से कोई पक्ष अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है, लेकिन अगर सोचा जाए कि अगर हिन्दू पक्ष मुस्लिम भाइयों के लिए मस्जिद बनवाने का मार्ग प्रशस्त कर दे और मुस्लिम भाइयों की तरफ बिना किसी व्यवधान के राम मंदिर के निर्माण की सहमती दे दी तो निश्चित तौर पर इस देश में हिन्दू और मुस्लिम के बीच जो खाई बढ़ गई है वह काफी हद तक दूर ही नहीं होगी।
इस मुस्लिम युवा ने पेश कर दी है मिसाल अपनी अपनी राजनीति को चमकाने के लिए जहां पूरे देश में मंदिर और मस्जिद के नाम पर लोग वोटों के ध्रुवीकरण करने की कोशिश में जुटे हुए हैं वहीं अम्बेडकर नगर के एक मुस्लिम युवक ने वह कर दिखाया है। जिसकी मिशाल शायद ही देखने को मिले। जी हां बरकात अली नाम के इस युवा मुसलमान ने जिला मुख्यालय पर स्थित अकबरपुर रेलवे स्टेशन के समीप भगवान शंकार के एक जीर्ण हो चुके मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार कराने का वीणा उठाया है। जहां एक तरफ आयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रोज जद्दोजहद चल रही है और देश का कोई भी ऐसा चुनाव नहीं रहता जहां यह मुद्दा सामने न आता हो, वही एक मुस्लिम युवक के अकबरपुर रेलवे स्टेशन के पास स्थित जर्जर हो चुके शिव मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य पूरी लगन से शुरू कर दिया है।
लगभग 60 साल पुराने शिव मंदिर में अकबरपुर रेलवे कालोनी और इसके आस पास के लोग पूजा पाठ करने आते हैं। इस मंदिर के पास रहने वाले रेलवे में गार्ड के पद पर तैनात विश्वनाथ इस शिव मंदिर की देखभाल करते है, लेकिन जर्जर हो चुके इस मंदिर का कायाकल्प करने के लिए जैसे ही उन्होंने
काम शुरू कराया, तो इसी मोहल्ले के रहने वाले बरकत अली ने मंदिर जीर्णोद्धार का काम संभाल लिया।
बरकत अली का कहना है कि मंदिर के जीर्णोद्धार और मंदिर को भव्य रूप देने में जो भी खर्च आएगा ओ उसका वहन स्वयं करेंगे और कुछ अन्य मुस्लिम लोगों को हाथ बटाने के लिए प्रेरित करेंगे। जिस तरह से बरकत अली ने भाई चारा कायम करते हुए मुस्लिम होकर मंदिर के निर्माण में स्वयं को जोड़ते हुए अपना धन भी खर्च कर रहे हैं काश यही दोनों समुदाय के लोग समझ जाए और अयोध्या का विवाद भी सुलह समझौते से निपटा ले तो शायद देश का भला हो जाए।
बरकत अली का मदरसा भी साम्प्रदायिक एकता की है मिशाल बरकत अली पहले से ही जाति धर्म से ऊपर उठकर साम्प्रदायिक एकता को बढ़ाने के लिए एक ऐसे मदरसे का संचालन कर रहे हैं, जो हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है। बरकत अली के मदरसे “मदरसा फैजाने गरीबनवाज़” एक ऐसा मदरसा है, जिनके बच्चों के सर पर टोपी और बदन पर भगवा ड्रेस रहता है , जहां जन गण मन राष्ट्रगान के साथ मदरसा में पढ़ाई शुरू होती है और बिना किसी जोर दबाव के बन्दे मातरम गाया जाता है और भारत माता की जयकारे भी लगते हैं। इस मदरसे में हिन्दू मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के बच्चे पढ़ते है इनमे कभी किसी किस्म का कोई भेद भाव नहीं होते।