हालांकि उस चुनाव के बाद जब कांग्रेस और सपा के बेमेल गठबंधन के बारे में सवाल उठाया गया तो कई बार मंचों से अखिलेश यादव ने राहुल के साथ कि गई दोस्ती और कांग्रेस के साथ किये गए गठबंधन को दीर्घ कालिक बताया था। अखिलेश और राहुल गांधी अपने पुराने गठबंधन पर किये गए दावे तो भूल गए और मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़ एवं राजस्थान में कांग्रेस ने सपा को किनारे किया तो आने वाली लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा ने कांग्रेस से किनारा करते हुए अप्रत्याशित रूप से बसपा के साथ गठबंधन नया पैतरा चला है। सपा और बसपा प्रमुख की पिछले दिन हुई संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस के बाद प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन प्रदेश स्तर पर किये गए इस गठबंधन को जमीनी स्तर पर कितना सहयोग मिलेगा, इसको लेकर सपा के ही कई दिग्गज शंका भारी नजर से देख रहे हैं।
सपा नेता अहमद हसन की बसपा के साथ गठबंधन पर साफ दिखी भरोसे की कमी सपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद अहमद हसन ने जिले के टांडा में सामाजिक न्याय कार्यक्रम के दौरान जिस तरह से सपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं से बात करते हुए उन्हें समझा रहे थे, उससे साफ जाहिर होता है कि इस नए गठबंधन की कामयाबी को लेकर आशंका है। उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहाकि अखिलेश व मायावती ने मिलकर जो गठबंधन किया है, उसे हम सबको मिलकर जमीनी स्तर पर भी मजबूत बनाना होगा। उन्होंने सपाइयों को नसीहत दी कि वे हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि उनका बसपा से गठबंधन है। बसपा नेताओं, कार्यकर्ताओं के सम्मान में कोई आंच न आने पाए। सपाई कतई तौर पर ऐसा कोई शब्द बसपा से जुड़े लोगों को नहीं बोलेंगे जिससे उन्हें कोई तकलीफ हो। काफी प्यार-मोहब्बत से इस गठबंधन को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी हम सबको मिली है, जिसे हमें हरहाल में निभाना है।
अहमद हसन के ये बयान साफ तौर पर बसपा और सपा के बीच पुरानी तल्खियों की तरफ साफ तौर पर इशारा कर रहे थे, जिसमें दोनों पार्टियों के बीच जिले स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक न सिर्फ राजनीतिक प्रतिद्वंदिता देखने को मिलती थी, बल्कि कई बार साफ तौर पर दोनों पार्टी के कार्यकर्ता दुश्मनों की तरह लड़ते हुए दिखाई पड़ते थे।
भाजपा को नेस्तनाबूद करने की दे रहे हैं दुहाई पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद और दोनों पार्टियों के अस्तित्व को बचाने के लिए जिस तरह से यह गठबंधन हुआ है, उसमे आशंका इस बात की है कि जमीनी स्तर पर एक दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ताओं और जातिगत आधारों पर जो वैमनष्ययता चलती चली आ रही, क्या इतनी आसानी से उसे ये पार्टियां समाप्त कर पाएंगी। हालांकि अहमद हसन इस गठबंधन के जरिये भाजपा को नेस्तनाबूद करने के लिए जनता की मांग पर किया गया गठबंधन बता रहे हैं।