
Prof Dr Sapna
अंबिकापुर. 'देखिए ये उजाला उस ओर है, जहां रोशनी नहीं जाती'। दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले में 41 वर्ष से डॉ. सपना मुखर्जी चरितार्थ कर रहीं हैं। 1977 से होलीक्रॉस वीमेन्स कॉलेज के प्राणीशास्त्र विभाग में सेवा दे रहीं डॉ. सपना ने बताया कि मानवता का सबसे बड़ा दान शिक्षा दान है, जिसका दायित्व शरीर रहने तक निर्वहन करना ही है।
डॉ. सपना का जन्म कोलकाता में हुआ लेकिन पिता तारा प्रसन्न बनर्जी के साथ शहडोल जिले में रहने के दौरान पांचवीं, जबलपुर में 12वीं, गल्र्स डिग्री कॉलेज बिलासपुर से स्नातक तथा एपीएस विश्वविद्यालय रींवा से एमएससी किया। फिर सागर विश्वविद्यालय से एमफिल करने के बाद अध्यापन के लिए होली क्रॉस वीमेन्स कॉलेज आईं।
विद्यार्थियों की संख्या शिक्षकों के लिए चुनौती
डॉ. सपना ने बताया कि कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है, जिससे प्रत्येक विद्यार्थी तक सीधा संवाद कम हो गया है। बढ़ती संख्या से कॉलेज को तो फायदा हुआ है लेकिन विद्यार्थियों के प्रति शिक्षकों का दायित्व बढ़ गया है।
उन्होंने बताया कि संचार के बढ़ते साधनों से पहले तक कक्षा में शिक्षक, पुस्तकें, श्यामपट्ट, प्रयोगशाला ही विद्यार्थी के सहयोगी होते थे लेकिन वर्तमान में प्रत्येक विषय का वीडियो विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है। इन्टरनेट पर उपलब्ध संसाधनों और कक्षा के उपलब्ध संसाधनों में अंतर है।
कक्षा में शिक्षक प्रत्येक प्रयोगात्मक क्रिया करके चित्रों के माध्यम से अभ्यास करता है। इन्टरनेट के समक्ष विद्यार्थी को स्वयं अभ्यास करना होता है। कक्षा में किया गया अभ्यास ही परीक्षा के लिए श्रेष्ठ होता है।
नि:शुल्क शिक्षा दान ही जीवन का उद्देश्य
1 जुलाई 2018 को सेवानिवृत्त होने वाली डॉ. सपना ने बताया कि विद्यार्थी उनके घर तक जिज्ञासाओं के साथ आते हैं। विद्यार्थियों के साथ अध्ययन-अध्यापन अब जीवन बन गया है। डॉ.सपना ने प्रतिदिन विद्यार्थियों के साथ अध्ययन-अध्यापन का समय निर्धारित कर लिया है। उन्होंने जीवन का उद्देश्य बताते हुए कहा कि आगे की जिन्दगी नि:शुल्क शिक्षा दान के साथ ही गुजरेगी।
Published on:
05 Sept 2018 04:19 pm
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