scriptपातालतोड़ कुआं देखना है तो छत्तीसगढ़ के शिमला में आईए, इसके पानी के आगे मिनरल वाटर भी फेल | If to see the Palatod well then come to Chhattisgarhs Shimla | Patrika News

पातालतोड़ कुआं देखना है तो छत्तीसगढ़ के शिमला में आईए, इसके पानी के आगे मिनरल वाटर भी फेल

locationअंबिकापुरPublished: Jan 13, 2018 08:06:57 pm

मैनपाट के रोपाखार में स्थित पातालतोड़ कुआं से निकल रहे पानी की धार आज तक नहीं हुई कम, धरती के नीचे से निकल रही पानी की मोटी धार

Pataltod well

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अंबिकापुर. प्रदेश में प्राकृतिक जल स्रोत को बचाने सरकार कई जन जागरूकता अभियान चला रही है और सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से 50 किलोमीटर दूर मैनपाट के रोपाखार में दशकों से धरती के नीचे से पानी की अविरल धारा निरंतर प्रवाह में बह रही है।
गर्मी के दिनों में अच्छे-अच्छे जल स्रोत सूख जाते हैं लेकिन पाताल तोड़ कुआं के नाम से मशहूर हो चुके इस प्राकृतिक जल स्रोत की धारा इतने अरसे में कभी कम नहीं हुई। बड़ी बात तो ये है कि जमीन से निकलने के बावजूद इसका पानी पूरी तरह प्यूरिफाइड और किसी भी बोतलबंद पानी से कम नहीं है।
आज ये जल स्रोत रोपाखार के ग्रामीणों के पेयजल के साथ ही अन्य कार्यों में पूरे साल उपयोग आ रहा है। अब इस जल स्रोत को भी पर्यटन के दृष्टिकोण से संरक्षित व विकसित किया जा रहा है।
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मैनपाट के रोपाखार पंचायत में वर्ष 1965 में तिब्बतियों ने ढोढ़ीनुमा एक प्राकृतिक जल स्रोत की पहचान की थी। जिसे वर्ष १९९१ में एक स्ट्रक्चर का प्रदान कर इसका नाम पातालतोड़ कुआं रखा गया, क्योंकि यहां से धरती के नीचे से निरंतर एक मोटी धार में पानी निकल रहा था।
रोपाखार पंचायत के सरपंच खोरी बाई ने बताया कि अरसे से इस जल स्रोत का उपयोग पीने के पानी के साथ ही अन्य कार्यों के लिए पूरे गांव के लोगों द्वारा किया जा रहा है। ये जल स्रोत ग्रामीणों के लिए देवी धाम जल स्रोत भी मानते हैं, क्योंकि ये अरसे से पूरे १२ महीने में एक ही धार में निरंतर प्रवाहित हो रहा है।
गर्मी के दिनों में भी जल स्रोत की धार कभी कम नहीं हुई। यहां अभी पक्के ढांचे का निर्माण करा दिया गया है, आसपास शौचालयों का निर्माण होने की वजह से इसे बचाने के लिए विशेष पहल भी की जा रही है ताकि इसका शुद्ध पानी दूषित न हो। मैनपाट घूमने आने वाले पर्यटक यहां का पानी पीने जरूर आते हैं।

विज्ञान शास्त्री ने बताई ये वजह
पीजी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान शास्त्री डॉ. हिरण दास महार ने बताया कि गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं। पानी गुरूत्वाकर्षण के विपरीत प्रभाव के कारण ऊपर की ओर निरंतर प्रवाहित हो रहा है। पानी चट्टान व बालू की वजह से छन कर आने की वजह से पूरे तरीके से शुद्ध है।

साइंस के अनुसार ये भी एक वजह
पीजी कॉलेज के ही भूगोल विभागाध्यक्ष डॉ. आरके जायसवाल ने बताया कि भूगोल के अनुसार इसे प्रवाहित जल कहा जाता है, जो २४ घंटे निरंतर बहते रहता है। यह जल का वह भाग है जो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ज़मीन के क्षेत्रों से होता हुआ अंत में नीचे जाकर ठोस चट्टानों के ऊपर इक_ा हो जाता है।
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के प्रभाव के कारण वर्षा का पानी नीचे उतरते-उतरते अपारगम्य चट्टानों तक पहुंच जाता है। धीरे-धीरे चट्टान के ऊपर की मिट्टी की परतें पूरी तरह संतृप्त हो जाती हैं। इस प्रकार का एकत्र पानी भौम जल परिक्षेत्र की रचना करता है ।
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