गौरतलब है कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ग्राम पंचायत पंडोनगर में रुके थे और विशेष पिछड़ी समुदाय के पंडो जनजाति को गोद लेकर दत्तक पुत्र की उपाधि दी थी। प्रथम राष्ट्रपति जिस भवन में रुके थे, उसे राष्ट्रपति भवन की उपाधि दी गई है। यह देश का दूसरा राष्ट्रपति भवन के रूप में जाना जाता है। ढाई दिन में तैयार किए गए कुएं को देखने व उसकी वास्तविक स्थिति से अवगत होने अक्सर लोग बाहरी इलाके से भी यहां पहुंचते हैं।
वहीं इतने सालों में विशेष पिछड़े पंडो जनजाति के लोगों के विकास हेतु काफी कदम उठाए गए लेकिन अधिकांश विकासशील योजनाएं केवल कागजों में ही संचालित होतीं नजर आ रहीं हंै। गत दिनों करीब 70 वर्षों बाद यहां राज्यपाल अनसुईया उइके ने पहुंचकर कहा कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सपनों को पूरा करेंगे। राज्यपाल के पंडोनगर आगमन से लोगों में नई उम्मीद जगी है।
पट्टा के लिए भटक रहे
ग्रामीणों ने बताया कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पंडो जनजाति के निवासरत अधिकांश लोगों को आज तक पट्टा नहीं मिल सका है। ग्रामीणों का आरोप यह भी है कि पट्टे के लिए वर्षों से कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। विभागीय अधिकारियों की उदासीनता की वजह से दत्तक पुत्रों में नाराजगी व्याप्त है।