असल में मिलावटी पदार्थों के नमूनों की जांच और उसके बाद की कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि मिलावटी वस्तुओं का धंधा करने वाले बेखौफ होकर ये धंधा कर रहे हैं। इससे आमजन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी हो रहा है। इन दिनों खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से खाद्य पदार्थों के नमूने लेने का अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इसका खास असर नहीं दिख रहा।
रिपोर्ट के बाद भी लगता समय रिपोर्ट में जिन व्यापारियों के खाद्य पदार्थों के नमूने फेल रहते हैं, उनके खिलाफ केस दर्ज कर आगे की कानूनी कार्रवाई करने में भी काफी समय लग जाता है। लैब से जांच रिपोर्ट आने के बाद विभाग की ओर से सम्बन्धित दुकानदार को नमूने की जांच का एक और मौका दिया जाता है। इसके लिए प्रार्थना पत्र लगाने के लिए एक माह का समय तय है। नमूने की जांच उच्चस्तरीय लैब गाजियाबाद या पुणे में होती है। वहां से रिपोर्ट आने में भी समय लगता है। दुकानदार नमूने की दुबारा जांच नहीं कराता है, तो विभाग की ओर से कार्रवाई शुरू की जाती है। इसके लिए तीन साल तक का समय रहता है। अधिकारियों के मुताबिक मिलावट का अपराध साबित होने पर पांच लाख, तीन लाख तथा दो लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है।
33 नमूने फेल विभाग की ओर से इस वर्ष जांच के लिए भेजे गए 190 नमूनों में से 155 की रिपोर्ट प्राप्त हो गई है। इनमें से करीब 33 नमूने फेल पाए गए। ये बिस्कुट, नमकीन, मसाले, तेल, घी आदि के हैं।
गंगापुरसिटी में अधिक है मिलावट का खेल वाणिज्यिक नगरी के रूप में प्रदेशभर में विख्यात गंगापुरसिटी में मिलावट का काम अधिक हो रहा है। हाल ही राजस्थान पत्रिका ने सरसों के तेल में मिलावट का मुद्दा उठाया था। इसके बाद खाद्य सुरक्षा विभाग ने कुछ दुकानों पर जांच भी की थी। हालांकि फौरी तौर पर की गई कार्रवाई से मिलावटखौरों पर कोई असर नहीं पड़ा।
मसालों में भी मिलावट अपने जेब भरने के फेर में मसालों से लेकर छोटे-मोटे खाद्य पदार्थों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। मसालों में रंग लाने के लिए रासायनिक पदार्थ तक मिला दिए जाते हैं। कई रासायनिक पदार्थ लोगों की सेहत के लिए घातक होते हैं। बाजार में चांदी के नाम पर लेड, जस्ते जैसे घात पदार्थों के वर्क बेचे जा रहे हैं। जो मिठाइयों पर लगाने पर चमकदार तो होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।