राज्य में सरकार बदलने के बाद राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों को बदलने की कवायद वर्ष 2019 में की गई। पहले दुर्ग विवि और कुशाभाऊ ठाकरे विवि के कुलपतियों ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। लेकिन सरगुजा विवि के कुलपति डा. रोहणी प्रसाद ने इस्तीफा देने से इनकार किया था तो धारा 52 लगाकर आयुक्त सरगुजा को प्रभार दिया।
बाद में अशोक सिंह को कुलपति बनाया गया था। इससे पहले कुलपति डॉ प्रसाद के खिलाफ फर्जी शिकायतें हुईं। जिस पर एक जांच कमेटी बनाई गई। इसकी रिपोर्ट नहीं आई। तभी 24 दिसंबर को एक अन्य कमेटी सरगुजा आयुक्त ने बनाकर इसकी रिपोर्ट तैयार की।
यह रिपोर्ट शासन को भेजी गई जिसमें कहा गया कि कुलपति (Vice Chancellor) के कुछ कार्यकलापों से सरकार की छवि खराब हो रही है। 3 जनवरी 2020 को धारा 52 लगा दी गई। और 6 जनवरी को डॉ. प्रसाद हटा दिए गए और आयुक्त को प्रभारी कुलपति बनाया गया। बाद में अशोक सिंह को नियमित कुलपति नियुक्त किया गया। व्यथित होकर डॉ. प्रसाद ने हाईकोर्ट की शरण ली।
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सिंगल बेंच ने पूर्व कुलपति डॉ. रोहिणी प्रसाद के पक्ष में दिया था आदेश
जस्टिस पी. सेम कोशी की सिंगल बेंच ने डॉ प्रसाद की याचिका पर सुनवाई करते हुए शासन द्वारा इन्हें पद से हटाने का आदेश, जांच कमेटी और उसका आदेश और नए सिरे से कुलपति नियुक्त करने के आदेश को भी निरस्त कर दिया। इन्हें शेष कार्यकाल पूरा होने तक उन्हें दोबारा कुलपति (Vice Chancellor) पद पर नियुक्त करने का आदेश भी दिया।
इस निर्णय के खिलाफ शासन और अशोक सिंह ने हाईकोर्ट में दो रिट अपील डिवीजन बेंच में प्रस्तुत की है। दोनों रिट अपील पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए कुलपति के पद पर अभी यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 6 जुलाई को निर्धारित की है। प्रो. सिंह का पक्ष एडवोकेट मनोज परांजपे और शासन का पक्ष डिप्टी एजी जीतेंद्र पाली ने रखा।