मंगल की सतह पर ऐसा क्या हुआ होगा कि यह निर्जन और सूखा और ठंडा जमा हुआ है। इसका जवाब तो अभी तक नहीं खोजा जा सका है लेकिन तथ्यों पर भरोसा करें तो कभी यह गर्म रहा होगा और इसकी सतह पानी से भीगी हुई रही होगी। अब तक के शोध के अनुसार इस ग्रह का पानी ग्रह के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता से शून्य में चला गया होगा। उससे पहले यहां गर्म हवाएं चलती रही होंगी और बर्फ सतह पर जमी रही होगी। हांलाकि ये सभी इसकी व्याख्या नहीं कर पा रहे कि इस ग्रह से पानी पूरी तरह से कैसे गायब हो गया।
धरती से 25 प्रतिशत ज्यादा पानी
इस पहेली को सुलझाने की कोशिश में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मॉडलिंग तरीका प्रयोग किया। इस तरीके से उन्होंने यह जानने की कोशिश की पृथ्वी की चट्टानों से मंगल की सतह से क्रिया कर कितना पानी अलग किया जा सकता है। उन्होंने पाया कि मंगल ग्रह की बसाल्ट चट्टानों में पृथ्वी की चट्टानों से 25 प्रतिशत ज्यादा पानी सोखने की क्षमता है। इस तरह वहां की चट्टानों ने मंगल ग्रह से पूरा पानी किसी स्पंज की तरह सोख लिया।
चट्टानें हैं स्पंज सरीखी
शोध कर रहे एक वैज्ञानिक जॉन वेड ने बताया कि लोगों के मन में यह प्रश्न लम्बे समय से था कि यहां की सतह से पानी कहां और कैसे गायब हो गया है परंतु हम लोगों ने कभी पानी सोखे जाने की सम्भावना पर विचार नहीं किया था। उन्होंने बताया कि ताजा निकले हुए लावा से पानी ने क्रिया कर बसाल्ट परत बनाई होगी। इस तरह मंगल ग्रह की चट्टानों ने पानी सोखने वाले चट्टानों का निर्माण किया होगा। इस पानी-चट्टान क्रिया ने वहां की सतह को पूरी तरह सूखा और जीवनरहित बना दिया।