पाकिस्तान के पीएम इमरान खान इस बार अमरीका को आश्वस्त करने अपने साथ अहम सदस्यों को साथ लेकर आए थे। दरअसल पाकिस्तान की छवि एक ऐसे राष्ट्र की होती जा रही है जहां पर लोकतंत्र की जगह तानाशाही हावी होती जा रही है। इस मिथक को तोड़ने के लिए पाकिस्तान ने इस बार सेना और इंटेलिजेंस विभाग को अपने साथ रखा था।
ट्रंप-इमरान मीटिंग: दबाव में पाक पीएम, अमरीका से संबंध सुधारना होगी बड़ी चुनौती
पाक नीतियां बदले तो सुधार संभवइस तीन दिवसीय यात्रा में पाक पीएम इमरान के लिए चुनौती थी कि वह अमरीका को यह विश्वास दिलाए कि जिन समझौते पर सहमत होगा वह उसे पूरा करके दिखाएगा। दरअसल इमरान खान को वाइट हाउस आने का निमंत्रण देकर अमरीका, पाकिस्तान को यह संदेश देना चाहता हैं कि अगर पाकिस्तान की नीतियों में सुधार आता है तो अमरीका से उसके संबंधों में सुधार आएगा। अमरीका ने जनवरी 2018 में पाकिस्तान की सुरक्षा सहायता रोक दी थी और अभी तक इस रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान के साथ-साथ चरमपंथ ट्रंप प्रशासन की मुख्य चिंताओं में से हैं। वह अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान और हक्कानी नेटवर्क पर पर निर्णायक कार्रवाई करना चाहता है। ट्रंप प्रशासन जानता है कि पाक में सेना के समर्थन के बिना किसी भी बड़े फ़ैसले को लागू नहीं किया जा सकता है। पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार और सेना के बीच एक तरह का अलगाव रहा है।
इमरान खान ने अपने इस दौरे के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ-साथ अमरीकी रक्षा मंत्री पैट्रिक एम शनहान,जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मार्क मिले और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुलाकात की। इमरान खान के साथ इस बातचीत के दौरान उनके सेना प्रमुख और आईएसआई के प्रमुख थे। पाकिस्तान के सेना प्रमुख बाजवा और आईएसआई प्रमुख हमीद को साथ बिठाकर अमरीका उनसे ठोस आश्वासन चाहता है ताकि भविष्य में सरकार और सेना दोनों जवाबदेह बन सके।