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अमेठी से क्यों चुनाव हार गये राहुल गांधी, कमल खिलाने में सफल रहीं स्मृति, ये हैं 6 बड़े कारण

– कांग्रेस के गढ़ में स्मृति ईरानी ने खिलाया कमल- 55120 वोटों के अंतर से जीता लोकसभा चुनाव – सामने आये राहुल गांधी की हार के छह प्रमुख कारण

अमेठीMay 29, 2019 / 07:27 am

Hariom Dwivedi

Amethi Lok Sabha Elections

अमेठी से क्यों चुनाव हार गये राहुल गांधी, कमल खिलाने में सफल रहीं स्मृति, ये हैं 6 बड़े कारण

अमेठी. लोकसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर करते हुए भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को करीब 55 हजार वोटों से हराकर इतिहास रच दिया। 1967 से आस्तित्व में आई अमेठी लोकसभा सीट पर सिर्फ दो बार ही भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली है। स्मृति से पहले 1998 में संजय सिंह ने भाजपा के टिकट पर अमेठी से लोकसभा चुनाव जीता था। कांग्रेस ने यहां से 13 बार चुनाव जीता है। अमेठी से राहुल गांधी तीन बार और उनके पिता स्वर्गीय राजीव गांधी चार बार सांसद चुने गये। आइए जानते हैं कि इस बार अमेठी में ऐसा क्या हुआ कि राहुल गांधी अपनी पुश्तैनी सीट भी नहीं बचा पाये…

1- दिल का रिश्ता जोड़ने में सफल रहीं स्मृति
2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से चुनाव हारने के बावजूद स्मृति ईरानी यहां की जनता से जुड़ी रहीं। क्षेत्र में वह लगातार आती रहीं। राहुल गांधी से ज्यादा बार उन्होंने अमेठी का दौरा किया और यहां के लोगों से भावनात्मक रिश्ता जोड़े रखा। क्षेत्र में उन्होंने हैंडपम्प लगवाने से लेकर ग्रामीणों के लिए सब्जी के बीज, साड़ियां और जूते भी भिजवाये। इसके अलावा खुद के खर्चे पर लोगों को कुंभ स्नान के लिए भेजा। खुद को ‘दीदी’ की तरह प्रोजेक्ट कर वह अमेठी के लोगों से दिल का रिश्ता जोड़ने में कामयाब रहीं। यही कारण है कि अमेठी कि जनता ने राहुल गांधी की अपक्षा उन पर ज्यादा भरोसा जताया।

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2- स्मृति ईरानी का हाईटेक वार रूम
चुनाव प्रचार के लिए अमेठी जिला कार्यालय में स्मृति ईरानी ने हाईटेक वार रूम बनवाया था। इसमें सीसीटीवी कैमरों के साथ चार-पांच डेस्कटॉप कम्प्यूटर्स से लैस सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स की टीम बैठती थी। इनका काम स्मृति के ऑडियो और वीडियो मैसेज को जिले के हर कार्यकर्ता तक पहुंचाना था। ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ता वाट्सएप, ट्विटर फेसबुक आदि के जरिए मैसेज को वायरल करते थे। एक हिंदी वेबसाइट से बातचीत में कप्यूटर इंजीनियर विवेक माहेश्वरी बताते हैं कि अमेठी के लोग ट्विटर और फेसबुक पर काफी सक्रिय हैं। लाइव, ग्राफिक्स और मैसेज के जरिए उन्हें जोड़ा जाता था।
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3- आम लोगों से मिलकर जाती थीं स्मृति
अमेठी के लोगों का कहना है कि राहुल गांधी जब जिले के दौरे पर आते तो जायस, जगदीशपुर, गेस्ट हाउस सहित उनके तीन-चार ठिकाने ही हुआ करते थे। लोगों की शिकायत है कि उनसे मिल पाना इतना आसान नहीं था, वहीं चुनाव हारने के बावजूद स्मृति ईरानी लोगों के बीच जाती रहीं। स्मृति ईरानी रास्ते में गुमटी दुकानदारों से लेकर आम लोगों से मिलती हुई जाती थीं, जबकि राहुल गांधी की गाड़ियां तय प्रोग्राम के मुताबिक बाजार से फर्राटा भरती निकल जाती थीं। हालांंकि, कांग्रेस जिलाध्यक्ष योगेश मिश्रा लोगों के इन आरोपों से इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि राहुल गांधी सभी से मिलते थे और उनकी समस्याओं को भी सुनते थे।
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4- राहुल गांधी का वायनाड से चुनाव लड़ना
इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से भी नामांकन दाखिल किया था। जिले के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेठी की जनता के बीच राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने का निगेटिव संदेश गया। यहां के लोगों को लगा कि कांग्रेस अध्यक्ष को अमेठी की जनता पर भरोसा नहीं है, इसलिए वह केरल से भी चुनाव लड़ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी भी जनता तक इस मैसेज को पास करने में सफल रही कि राहुल गांधी अगर दोनों सीटें जीते तो वह अमेठी सीट इस्तीफा दे देंगे। इसके अलावा भाजपाई काफी हद तक यह भी मैसेज देने में सफल रहे कि अमेठी में हार के डर से राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं।
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5- कांग्रेसियों का अति आत्मविश्वास
कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का अति आत्मविश्वास भी कहीं न कहीं राहुल गांधी की हार के कारणों में से एक है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिले के कांग्रेसियों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जीत को लेकर जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास था। वह मानकर चल रहे थे कि यहां से कांग्रेस की जीत पक्की है। इसीलिए जिले के कांग्रेसी भाजपाइयों के मुकाबले सुस्त दिखे, जबकि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता ब्लॉक से लेकर बूथ तक सक्रिय थे। नतीजन, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
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6- मोदी मैजिक और राष्ट्रवाद
स्मृति ईरानी की जीत में राष्ट्रवाद के साथ-साथ मोदी मैजिक की भी अहम भूमिका रही। चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का जादू अमेठी वालों के सिर चढ़कर बोला। बची कसर उन अनसुने दल और निर्दलीय उम्मीदवारों ने पूरी कर दी, जिन्हें करीब 60 हजार वोट हासिल हुए। इसके अलावा कुल वोटों का 0.42 फीसदी यानी 3940 लोगों ने नोटा का बटन दबाकर राहुल गांधी की राह और मुश्किल कर दी। राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के बीच हार-जीत का अंतर 55120 वोटों का रहा।
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