धार्मिक कट्टरता की वजह से वहां से हिंदू-सिख पलायन करते रहे हैं और आज उनकी आबादी 1.6 प्रतिशत से भी कम रह गई।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हालात को लेकर समय-समय पर उठने वाली चिंताएं नई नहीं हैं। हाल ही सामने आए आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पाक में अल्पसंख्यकों पर किस कदर अत्याचार हो रहे हैं और यह समस्या कितनी गहरी है। पाकिस्तान की संसदीय अल्पसंख्यक समिति ने खुद स्वीकार किया है कि वर्ष 1947 में वहां 1817 हिंदू मंदिर और गुरुद्वारे थे, जिनमें से अब मात्र 37 ही बचे हैं। 1285 हिंदू मंदिर और 532 गुरुद्वारे या तो ध्वस्त कर दिए गए, या बहुसंख्यकों द्वारा कब्जे में ले लिए गए, अथवा जानबूझकर खंडहर बना दिए गए।
आधुनिक दौर में धार्मिक आधार पर भेदभाव की ऐसी स्थिति किसी भी राष्ट्र के लिए चिंताजनक होनी चाहिए। अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और अल्पसंख्यकों को विशेष सुरक्षा देने की प्रत्येक देश की जिम्मेदारी है। इतिहास गवाह है कि दुनिया के जिन मुस्लिम देशों ने धर्मनिरपेक्षता की राह चुनी तो उनकी तरक्की की राह भी अपने आप खुलती रही। संयुक्त अरब अमीरात ने अबू धाबी में भव्य बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण मंदिर बनवाया। वहीं सऊदी अरब ने अपने हिंदू कर्मचारियों के लिए पूजा की जगह दी। इतना ही नहीं- ओमान, बहरीन, कुवैत, कतर हर जगह अल्पसंख्यकों को अपने आराधना स्थलों का निर्माण करने व पूजा-अर्चना की पूरी छूट है। इंडोनेशिया में सैकड़ों हिंदू-बौद्ध मंदिर संरक्षित हैं। यही कारण है कि हिंदू प्रोफेशनल्स और भारतीय पर्यटक इन देशों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने हुए हैं। इसके ठीक विपरीत पाकिस्तान की उल्टी सोच ने उसे बर्बाद कर दिया है। धार्मिक कट्टरता की वजह से वहां से हिंदू-सिख पलायन करते रहे हैं और आज उनकी आबादी 1.6 प्रतिशत से भी कम रह गई।
सवाल है कि जब कट्टर इस्लामिक देशों तक में अल्पसंख्यकों को सम्मान और सुरक्षा दी जा रही है, तो पाकिस्तान इसकी अनदेखी क्यों कर रहा है? किसी देश की प्रगति केवल आर्थिक सूचकांकों से नहीं, बल्कि उसके अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, सम्मान और समानता से मापी जाती है। धार्मिक स्थल केवल धर्म का प्रतीक नहीं, बल्कि समुदाय की स्मृति, संस्कृति और पहचान का आधार होते हैं। इनका अस्तित्व मिटता है, तब समुदाय का आत्मविश्वास और सुरक्षा-बोध भी क्षीण होता है। पाकिस्तान में बसे हिंदू और सिख परिवार पीढिय़ों से इसी मानसिक और सामाजिक दबाव को झेलते आए हैं।
यदि पाकिस्तान वास्तव में एक बहुलतावादी और आधुनिक राष्ट्र की श्रेणी में आना चाहता है, तो उसे कट्टरपंथ को प्रश्रय देने के बजाय अपने यहां अल्पसंख्यक समुदायों की रक्षा के लिए ईमानदार कदम उठाने होंगे। आज तो हालत यह है कि पाकिस्तान की छवि न केवल अल्पसंख्यकों, बल्कि इंसानियत के दुश्मन की बनी हुई है। जरूरत इस बात की है कि पाकिस्तान आईना देखे और सुधरे, वरना इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा।