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अनूपपुर

जिले से कैसे उभरेगा स्व. मेजर ध्यानचंद का स्वरूप जिले में नहीं है हॉकी का अस्तित्व

नही है मैदान और नहीं हैं खेल के खिलाड़ी, स्कूलों में भी नाममात्र के प्रशिक्षक खेल भावनाओं की कर रहे पूर्ति

अनूपपुरAug 29, 2019 / 04:35 pm

Rajan Kumar Gupta

How will the self emerge from the district Major Dhyanchand's form doe

जिले से कैसे उभरेगा स्व. मेजर ध्यानचंद का स्वरूप जिले में नहीं है हॉकी का अस्तित्व

अनूपपुर। एक दौर था जब भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी का चारो ओर बोलबाला था। इस खेल में देश के कई महान खिलाडिय़ों ने विश्वस्तर पर अनेक कीर्तिमान स्थापित किए। इनमें मेजर स्व. ध्यानचंद अग्रणी रहे। लेकिन उनके निधन के बाद उनके स्वरूपों के रूप में आदिवासी क्षेत्रों से दूसरा ध्यानचंद कभी बन नहीं सका। भले ही राजनीति और प्रशासनिक स्तर के मंच से हरेक आदिवासी कार्यक्रमों में युवाओं को प्रत्सोहित करने आदिवासी युवाओं की प्रतिभाओं में कमी नहीं सिर्फ निखारने की बात दोहराई गई। बावजूद उनकी प्रतिभाएं पिछले कई दशकों से अनूपपुर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में नहीं निखर पाई। इसका मुख्य कारण न तो युवाओं में पहले जैसी रूचि है और न ही खेल मंत्रालय इसके अस्तित्व को बचाने का प्रयास कर रहा है। देश और प्रदेश में हॉकी की क्या स्थिति है इस बात से सभी वाकिफ है। यदि बात की जाए अनूपपुर की तो यहां एक भी हॉकी के खिलाड़ी नहीं है। जिले में खेल और युवा कल्याण विभाग के बावजूद भी छात्रों को इस खेल के प्रति आकर्षित करने के लिए किसी प्रकार की पहल नहीं की गई है। जबकि जिले १६७६ की तादाद में स्कूल हैं। लेकिन यहां भी पीटीआई के लिए ७० स्वीकृत पदों में मात्र १४ पीटीआई के शिक्षक उपलब्ध है। जो शिक्षक उपलब्ध है उन संकूलों में खेल प्रोत्साहन जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। यदि सम्बंधित विभाग और जिला प्रशासन ने इस और कोई पहल की होती तो शायद आज यह स्थिति नहीं होती। जबकि समय समय पर जिला स्तरीय विभिन्न खेलों का आयोजन होता रहता है। लेकिन आज तक सम्बंधित विभाग या जिला प्रशासन ने हॉकी के लिए किसी प्रकार का आयोजन नहीं किया। आदिवासी अंचल को विकास की सम्भावनाओं के मद्देनजर १६ साल पहले अनूपपुर को जिला मुख्यालय को जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। जिले में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन उनके अभ्यास के लिए मैदान ही नहीं है।
जिला प्रशासन ने खेल सुविधाओं के लिए चचाई रोड पर जिला खेल और प्रशिक्षण केन्द्र पर लाखों रूपए खर्च कर वॉलीबॉल, बैडमिंटन, लॉनटेनिस, बिलियड्स, टेबुल टेनिस सहित जिम संचालन के लिए व्यवस्थाएं कराए। लेकिन आलम है कि अब इन खेल मैदानों पर ईंट के भवन और मैदानों पर घास के अलावा कुछ नहीं हैं। खेल विभाग के इस मैदान पर इतना स्थान भी नहीं है कि हॉकी, फुटबॉल क्रिकेट जैसे खेलों का आयोजन किया जा सके। जबकि वर्तमान में प्रस्तातिव स्टेडियम का निर्माण पिछले पांच सालों बाद भी अधूरा पड़ा है। हकीकत यह कि खेल सुविधाओं से जूझ रहे खिलाडिय़ों की समस्या के बारे में जिला क्रीड़ा अधिकारी का भी मानना है कि जिले में खेल प्रतिभाओं के विकास में बजट एक मुख्य समस्या है। इसके अलावा जो भी अन्य सुविधाएं वर्तमान में है उनमें भी प्रशिक्षण और अधिकारी की उदासी शामिल है। विभागीय सूत्रों के अनुसार जिले में खेल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष लाखों रूपए खर्च किए जाते हैं। लेकिन अफसोस देश का राष्ट्रीय खेल अपने उत्थान वाले ग्रामीण क्षेत्रों से ही पतन की ओर जा रहा है, जहां युवाओं को प्रशिक्षित करने सहित खेल के लिए भी प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है।
वर्सन:
यहां हॉकी जैसे खेल के लिए न तो मैदान है और ना ही खिलाड़ी। पीटीआई भी स्वीकृत पदों की एक चौथाई ही उपलब्ध है। जहां पीटीआई शिक्षक है वहां खेल संसाधनों का अभाव है। खेल प्रत्सोहन के लिए प्रयास किए जाएंगे।
डीएस राव, सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग अनूपपुर।
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