आईजीएनटीयू में एक दिवसीय कार्यशाला, भारतीय पारंपारिक ज्ञान को सहेज कर नई शिक्षा नीति लागू करने का सुझाव
छात्रों को शोध की ओर प्रेरित करेगी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति
आईजीएनटीयू में एक दिवसीय कार्यशाला, भारतीय पारंपारिक ज्ञान को सहेज कर नई शिक्षा नीति लागू करने का सुझाव
अनूपपुर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप पर विमर्श के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के तत्वावधान में गुरूवार १८ जुलाई को एक दिवसीय विशेष कार्यशाला का आयोजन कर इसके महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया गया। शिक्षा नीति को तैयार करने वाली कमेटी के दो सदस्यों ने इसे अगले दो दशकों के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों का आह्वान किया कि वे इसमें स्वयं के अमूल्य सुझाव प्रदान कर इसे और व्यापक बनाने में सहयोग प्रदान करें। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने वाली कमेटी के सदस्य प्रो. राम शंकर कुरील ने बताया कि नई शिक्षा नीति में प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली को आधार बनाते हुए प्राथमिक और उच्च शिक्षा को विस्तारित करने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत ने स्वयं के ज्ञान, दर्शन और भाषा की मदद से दुनिया पर राज किया है। यह अभी भी संभव है बस देश को एक भाषा अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने छात्रों को डिग्री देने की बजाय उन्हें दूरदर्शी बनाने, शोध और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने, शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और क्लास में अध्यापन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देने पर जोर दिया। आईजीएनटीयू के कुलपति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने वाली कमेटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य प्रो. टीवी कटटीमनी ने कहा कि नई शिक्षा नीति भारतीय संस्कृति और सभ्यता को सहेज कर आगे बढऩे का प्रयास है। उनका कहना था कि नई शिक्षा नीति में सभी विषयों का ज्ञान देने और छात्रों को अपनी रूचि के अनुरूप आगे पढ़ाई करने की स्वतंत्रता देने का प्रयास किया गया है। छात्रों को अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक ज्ञान देने और कम्युनिकेशन स्किल को बढ़ावा देने के लिए भी कई सुझाव रखे गए हैं। उनका कहना था कि भारत का पारंपारिक ज्ञान भी विज्ञान जितना महत्वपूर्ण है। इसे भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। निदेशक (अकादमिक) प्रो. आलोक श्रोत्रिय ने उदारीकण के बाद बदलते परिदृश्य में भारत केंद्रित शिक्षा व्यवस्था बनाने पर जोर दिया। उनका कहना था कि भारत धर्म, दर्शन और अध्यात्म के साथ ही शिक्षा में भी प्राचीनकाल से सिरमौर रहा है इस गौरव को पुन: प्राप्त करने की आवश्यकता है। कार्यशाला में प्रमुख शिक्षकों, शोधार्थियों और छात्रों ने नई शिक्षा नीति के बारे में स्वयं के विचार प्रस्तुत किए।
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