साजनमऊ तालाब बारिश के मौसम में पूरी तरह से भर चुका था, लेकिन अब तालाब पूरी तरह से सूख चुका है। तालाब की जमीन में कहीं.कहीं ही पानी है और वह आधा फि ट से भी कम। सिचाई के नहर में पानी दिए जाने से हर साल यह तालाब खाली हो जाता हैए लेकिन नहर बंद होने के डेडलेवल में डेढ़ से दो फि ट पानी भरा रहता था। जबकि इस बार डेडलेवल का पानी भी सूख चुका है। यह सिर्फ एक तालाब की बात नहीं, बल्कि किले के बड़े बांधों को छोड़कर ज्यादातर तालाबों की हालत यही है। तालाब सूखने से आसपास के गांवों में जलस्तर घट चुका है। इससे लोगों को अभी से पेयजल की चिंता सताने लगी है। इसकी लोग कई बार अधिकारियों से शिकायत भी कर चुके हैं।
सैंकड़ों हैंडपम्प सूखे पड़े, पानी के लिए लोग परेशान
शहरी क्षेत्र में तो जहां करीब 30 फ ीसदी से अधिक आबादी पेयजल के लिए भटक रही है और पेयजल समस्या की वजह से विवाद भी शुरू हो गए हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में हालात और खराब हैं। ग्रामीणों के मुताबिक कई जगहों पर ट्यूबवेलों में भी 300 फि ट तक पानी नहीं है और हैंडपंप भी अभी से सूख चुके हैं। गांव में एक या दो हैंडपंपों में ही पानी बचा है और उनमें भी पानी बहुत कम है। इससे हैंडपंप 10.20 मिनिट ही पानी दे पाते हैं और इसके बाद एक से आधे घंटे के लिए पानी निकलना बंद हो जाता। नतीजतन घरों पर पानी की व्यवस्था करने के लिए महिलाएं दिनभर पानी ढोने में ही लगी रहती हैं।
फि र भी गंभीर नहीं विभाग और प्रशासन
सैंकड़ों हैंडपंप खराब पड़े होने के बाबजूद भी न तो पीएचई विभाग कोई गंभीरता दिखा रहा है और न ही प्रशासन। इतना ही नहीं पीएचई विभाग के पास खराब हैंडपंपों की वास्तविक संख्या भी नहीं है। वहीं गर्मियों में भयावह होने वाले हालातों से निपटने के लिए भी कोई योजना तैयार नहीं की गई।
इन गांवों की समस्या निपटाने कोई नहीं गंभीर
1.पानी के लिए 3 किमी दूरी करना पड़ती है तय
मुंगावली विकासखंड के बीलाखेड़ा गांव में वर्षों से पेयजल की समस्या है। सदी-गर्मी हो या बारिश, हर मौसम में ग्रामीणों को खेतों के कुए से पानी लाने रोजाना डेढ़ किमी दूर जाना पड़ता है और पानी से भरे बर्तन रखकर डेढ़ किमी वापस आना पढ़ता है। हालत यह है कि सुबह चार बजे से बच्चों को भी पीने के पानी का इंतजाम करने बर्तन लेकर तीन किमी की दूरी रोजाना तय करना पड़ती है। लेकिन समस्या निपटाने अब तक को स्थायी योजना नहीं बनाई गई।
2. पानी के लिए उतरना-चढऩा पड़ती है पहाड़ी
बर्री गांव में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। इससे महिलाओं और बच्चों को पहाड़ी के नीचे से पानी भरकर लाना पड़ता है। इसके लिए रोजाना ही महिलाएं पानी भरने पहाड़ी से नीचे उतरती हैं और सिर पर पानी से भरे बजनी बर्तन रखकर पहाड़ी चढ़कर घर पहुंचना पड़ता है। लेकिन इस गांव की पानी की समस्या खत्म करने के लिए अब तक कोई योजना ही नहीं बनाई गई।