करीब 25 दिन पहले पैर में गंभीर घाव और मानसिक विक्षिप्त व गंदी हालत में 46 वर्षीय अज्ञात मरीज भर्ती हुआ। मानसिक हालत खराब होने से न तो वह कुछ बता पा रहा था और न हीं इलाज के लिए अस्पताल में रुक रहा था। उसके बार-बार भागने की वजह से जिला अस्पताल के डॉ.अजय गहलोत ने पहले तो उसे नहलवाकर उसका हुलिया सुधारा और नए कपड़े पहनाए। वहीं शहर के अंशुमन त्यागी और हिमांशु जैन ने अटेण्डर बनकर इलाज के दौरान उसकी देखरेख की। इससे उसका घाव तो ठीक हो गया, साथ ही मानसिक हालत में भी सुधार हुआ। बाद में डॉक्टर व दोनों युवाओं ने उसे उसके परिवार तक पहुंचाने का निर्णय लिया।
हाथ पर लिखी तेलगू भाषा से मिला सुराग-
जब उस अज्ञात मरीज के हाथ पर तेलगू भाषा में लिखा हुआ शब्द देखा तो अंशुमन ने आंध्रप्रदेश में रहने एक रिश्तेदार को उसके हाथ पर लिखे शब्द की फोटो भेजी। इससे रिश्तेदार ने बताया कि लक्ष्मी शब्द लिखा हुआ है और यह तेलगू भाषा है। साथ ही उस मरीज से फोन पर बात कराई तो मरीज ने तेलगू भाषा में फोन पर बात की और अपना नाम गंगल्ला नरसिमुलु बताया और आंध्रप्रदेश मेडक के गजवेल मंडल के जालीगांव का रहने वाला बताया। इससे डॉ.अजय गहलोत ने नरसिमुलु को उसके घर पहुंचाने का निर्णय लिया। इसके लिए मेडक के एसपी को सूचना दी, तो उन्होंने इसे आठ साल से गुम बताया।
छोडऩे पहुंचे युवा तो ग्रामीणों ने खुशी में बांटी मिठाई-
शहर के समाजसेवियों ने चंदा कर राशि एकत्रित कर दी, साथ ही डॉ.अजय गहलोत ने भी राशि दी और अंशुमन और हिमांशु उसे घर तक छोड़कर आने के लिए भेजा। जब वह सिकंदराबाद पहुंचे, तो नरसिमुलु की 12 वर्षीय बेटी अपने पिता को देखकर उसके गले से लिपट गई। साथ ही गांव के 20-25 लोग भी साथ में उसे लेने आए, जिन्हें देखकर नरसिमुलु भी खुश हो गया और वह अपने परिवार से मिला। दोनों युवाओं ने उसे वहां के एसपी के सामने परिजनों की सुपुर्दगी में दिया। इससे एसपी ने दोनों युवाओं का सम्मान किया।