scriptबैंड, बाजा-बारात, अब गुजरे जमाने की बात, जमाना कर रहा जोरदार इस्तकबाल | the changing trends of marriage ceremonies, no pomp and show | Patrika News
अशोकनगर

बैंड, बाजा-बारात, अब गुजरे जमाने की बात, जमाना कर रहा जोरदार इस्तकबाल

Lockdown and Changing trends of marriages

दूल्हा-दुल्हन के घरवालों व खास रिश्तेदारों की शामिल हो रहे शादियों में
बिना बैंड-बाजा व बारात के ही हो रही शादियां

अशोकनगरMay 26, 2020 / 03:16 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

बैंड, बाजा-बारात, अब गुजरे जमाने की बात, समाज कर रहा जोरदार इस्तकबाल

बैंड, बाजा-बारात, अब गुजरे जमाने की बात, समाज कर रहा जोरदार इस्तकबाल

कोरोना काल में शादी समारोहों की एक नई रवायत की ये बानगी भर है। बिना बैंड-बाजा-बारात, बेहद खास रिश्तेदारों की मौजूदगी में शादी संपन्न कराने के दर्जनों उदाहरण हमारे आसपास देखने को इन दिनों मिल रहे हैं। अशोकनगर, राजगढ़, रायसेन, गुना हो या होशंगाबाद, विदिशा। हर जिले में शाहखर्ची वाली भव्य शादियों की जगह सादगी में संपन्न हो रही शादियां नजीर बन रही हैं। वह समाज जो शादियों पर फिजुलखर्ची व धन-वैभव के अनावश्यक प्रदर्शन पर लगातार खफा हो इस पर लगाम लगाने की बात करता था, उसका मंसूबा एक अदृश्य वायरस ने एक झटके में पूरा कर दिया। अब समाज का हर वर्ग ऐसी सादगीपूर्ण शादियों की सराहना के साथ साथ इसकी हिमायत भी कर रहा। लाॅकडाउन में संपन्न हो रही ऐसी शादियों से फिजूलखर्ची तो थमी ही है, समाज का यह डर भी अब मन से निकल रहा कि ‘लोग क्या कहेंगे।’
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एक अनुमान के मुताबिक अशोकनगर जिले में 25 मई तक करीब डेढ़ हजार शादियां संपन्न हो चुकी हैं। अन्य जिलों का भी कमोवेश यही हाल है। इन शादियों में 99 प्रतिशत के घर न कार्ड छपे, न कोई मैरेज हाल का इस्तेमाल हुआ, न डीजे, न बैंडबाजा न कुछ अन्य खर्च। केवल वरमाला, पूजा के सामान, कुछ कपड़े आदि का इंतजाम हुआ। मेहमानों की लिस्ट भी हजार या सैकड़ा से कम होकर अंगुलियों पर गिनती के लोग।
सतीश जैन बताते हैं कि उनके घर शादी समारोह में दोनों पक्ष से पांच-पांच लोग शामिल हुए। सुलभ की शादी में मेहमानों व घरवालों की संख्या करीब पचास तक पहुंच गई थी लेकिन अन्य खर्च बिल्कुल नगण्य रहा।
हरदा के बालागांव के रहने वाले अरविंद गौर अपनी शादी में दोनों तरफ से महज बीस लोगों को बुलाए। एक स्कूल संचालक अरविंद बताते हैं कि शादी में लाखों के खर्च का अनुमान था लेकिन महज 85 हजार रुपये कुल खर्च हुए। यह एक नई शुरूआत है जो युवाओं को आगे भी इसको कायम रखना चाहिए।
सारंगपुर के गोपाल सोनी बताते हैं कि शादी दो परिवारों के बीच का गठबंधन होता है। सादगी और कम लोगों के बीच संपन्न हो रही शादियों से एक सकारात्मक बात यह कि दोनों परिवारों को एक दूसरे को समझने का मौका भी मिल रहा।
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राजगढ़ के भगवान सिंह मंडलोई को अपनी शादी में दोस्तों के न शामिल होने का मलाल है। वह कहते हैं कि खर्च तो बेहद कम हो गए लेकिन दोस्त शादी में नहीं आ सके। दो-चार रिश्तेदार ही इसमें शामिल हुए।
बहरहाल, तड़क-भड़क साज-सज्जा, डीजे की तेज धुन, सैकड़ों-हजारों मेहमानों की मौजूदगी, बड़े-बड़े होटल्स-मैरेज गार्डन में संपन्न होने वाली भव्य शादियां अब गुजरे जमाने की बात होती दिख रही हैं। कोरोना काल में समाज ने एक नई पहल की है जहां सादगी है, बचत है, रीति-रीवाज की मौजूदगी है। इस सकारात्मक पहल में समाज को धन के आधार पर बांटने वाले तत्वों की भी बेहद कमी है। शायद ऐसे पहल का स्वागत समाज करना चाह रहा था जो कोरोना के बाद भी अगर कायम रह जाए तो कई विसंगतियां दूर हो जाए।
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