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पाकिस्तानी परमाणु बम के जनक ‘कैद’ से परेशान, मुक्ति के लिए कोर्ट में लगाई गुहार

पाकिस्तान (Pakistan) के परमाणु बम के जनक की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
बिना इजाजत कहीं आ-जा नहीं सकते कदीर

नई दिल्लीDec 25, 2019 / 10:09 am

Shweta Singh

abdul_qadeer

इस्लामाबाद। पाकिस्तान (Pakistan) के परमाणु बम (Nuclear Bomb) के जनक माने जाने वाले डॉ. अब्दुल कदीर खान (abdul qadeer) ने देश के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर गुहार लगाई है। उन्होंने कहा कि उन्हें सुरक्षा के नाम पर हो रही लगातार निगरानी से मुक्ति दिलाई जाए। खान ने कहा है कि उनके मूलाधिकार बहाल किए जाएं, जिसके तहत वो पूरे देश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से आने-जाने का अधिकार भी शामिल है।

2004 से ‘सुरक्षा’ के नाम पर नजरबंद

अब्दुल कदीर खान पाकिस्तान के परमाणु जनक होने के साथ-साथ उत्तर कोरिया जैसे कुछ देशों को गैरकानूनी तरीके से परमाणु तकनीक बेचने के लिए भी जाने जाते हैं। उन पर अमरीका ने प्रतिबंध लगाया था और 2004 में वह पाकिस्तान में उनकी ‘सुरक्षा’ के नाम पर नजरबंद किए गए थे। बाद में उन्हें आधिकारिक नजरबंदी से तो छुटकारा मिल गया लेकिन वह ‘सुरक्षा’ के नाम पर लगातार सरकारी सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षाकर्मियों की निगरानी में बने रहे।

‘कैद’ से मुक्ति को लेकर लाहौर हाईकोर्ट में गुहार

खान ने इस तरह की ‘कैद’ से मुक्ति को लेकर लाहौर हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि देश ने उनकी सुरक्षा के लिए जो विशेष इंतजाम किए हैं, उसके मद्देनजर उनकी याचिका सुनना उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। इसके बाद खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। खान ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया, ‘क्या सरकारी अधिकारियों को संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर याचिकाकर्ता को उसके नजदीकी रिश्तेदारों, सेवकों, दोस्तों, पत्रकारों, शिक्षकों, नौकरशाहों से मिलने से रोकने की अनुमति दी जा सकती है?’

बिना इजाजत कहीं आ-जा नहीं सकते

खान ने याचिका में याद दिलाया है कि वह पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के अगुआ रहे हैं, लोगों के सहयोग से उन्होंने ही देश को एक परमाणु शक्ति बनाया है। उन्हें इस बात का गर्व है। देश ने उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया है। उन्हें उनकी हैसियत के हिसाब से सुरक्षा भी मिली थी। लेकिन, बाद में हालात यह हो गए कि सुरक्षाकर्मी हर वक्त उनके दरवाजे पर रहते हैं कि कोई उनसे मिल न सके। वह बिना इजाजत कहीं आ-जा नहीं सकते। कुछ ही कदम के फासले पर रहने वाली उनकी बेटी तक उनसे नहीं मिल सकती। खान ने याचिका में कहा, ‘यह एक तरह से कैद में रखना है, बल्कि तन्हाई में रखना है। यह गैरकानूनी है। 84 साल का होने के बावजूद हमेशा इस भय में रहता हूं कि मुझ पर हमला किया जा सकता है। मेरे मूलाधिकार बहाल किए जाएं।’

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