भारत-जापान मिलकर Moon Mission की कर रहे तैयारी, इसरो लैंडर का करेगा निर्माण
Highlights
- इस मिशन की भनक सबसे पहले 2017 में बंगलूरू (Bangalore) में हुई एक बैठक के दौरान लगी थी।
- जापान लैंडिग मोड्यूल (Landing module) और रोवर (Rover) को बनाने का काम करेगा। वहीं इसरो लैंडर सिस्टम (Lander System) को तैयार करेगा।

नई दिल्ली। भारत और जापान मिलकर एक चंद्र मिशन की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस मिशन को 'लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन'(एलपीई) का नाम दिया गया है। इस अभियान के तहत लैंडर और रोवर को पहली बार चंद्रमा की सतह पर उताराने की तैयारी है। अभियान से जुड़ी जानकारियों से पता चलता है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) लैंडर की अगुवाई करेगा।
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी 'जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी' (जाक्सा) द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार इस मिशन को 2023 के बाद लॉन्च करने की तैयारी है। वर्तमान में इसरो मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम (गगनयान) को लेकर काम कर रहा है। इसकी लॉन्चिंग 2022 में की जानी है।
जाक्सा द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार ये पता चलता है कि जापान लैंडिग मोड्यूल और रोवर को बनाने का काम करेगा। वहीं इसरो लैंडर सिस्टम को तैयार करेगा। इस मिशन को जापान से लॉन्च करने की तैयारी है। इसकी लॉन्चिंग के लिए एच3 रॉकेट का उपयोग किया जाएगा। इसे मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज द्वारा बनाया गया है।
इस मिशन की भनक सबसे पहले 2017 में बंगलूरू में हुई एक बैठक के दौरान लगी थी। यहां पर एक बहु-अंतरिक्ष एजेंसियों की बैठक का आयोजन किया गया था। यह मिशन साल 2018 की पीएम नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान अंतर-सरकारी चर्चाओं का भी हिस्सा था।
एक टीम इस वर्ष की शुरुआत में स्थापित सहयोगी मिशन के लिए व्यापक प्रबंधन योजना को विकसित कर रही है। यह टीम स्पेसक्राफ्ट सिस्टम के लिए आवश्यक चीजों और इसरो के साथ मिलकर विभिन्न इंटरफेस विशिष्टताओं की जांच करेगी।
जाक्सा के अनुसार अवलोकन संबंधी आंकड़ों के विश्लेषण से हमें चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में पानी के अस्तित्व की जानकारी मिल सकेगी। जाक्सा इसरो के साथ मिलकर काम कर रहा है। वहां मौजूद जल संसाधनों की मात्रा और रूपों पर डाटा प्राप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सहयोगी मिशन की योजना बनाई जा सके। जापानी अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार हम इन संसाधनों का उपयोग भविष्य में स्थायी अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों के लिए कर सकेंगे। इस मिशन की मदद से ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्रमा के पानी वाले संसाधनों के वितरण और अन्य मापदंडों को समझा जाएगा।
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