नई दिल्ली। प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते लगातार प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे में नदी-तालाबों, जंगलों और झरने से लेकर ग्लेशियर तक सभी को भारी नुकसान पहुंच रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में आने से हर दिन ग्लेशियरों को क्षति पहुंच रही है। लगातार ग्लेशियरों के पिघलने की खबरें चिंता का विषय बनी हुई हैं। लेकिन विश्व के तीसरे ध्रुवीय प्रदेश के काराकोरम रेंज से इस संबंध में एक अच्छी खबर आ रही है। दरअसल एक शोध में पता चला है कि काराकोरम रेंज के ग्लेशियर बढ़ रहे हैं। आपको बता दें कि यह रेंज 20000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसे दुनिया के ग्लेशियरों का सबसे बड़ा घर माना जाता है।
ग्लेशियर के बढ़ने का यह एक मात्र उदाहरण प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर के बढ़ने का यह एक मात्र उदाहरण है। हालांकि बढ़ते तापमान के कारण हिमालय की गोद में बसे कई नदी-नाले और प्राकृतिक जलस्रोतों की हालत देखते हुए लोगों का इस बात पर यकीन थोड़ा मुश्किल है। काराकोरम के ग्लेशियर में बदलाव की बात सबसे पहले 2005 में सामले आई थी। जिसके बाद विश्व के कई हइड्रोलॉजिस्ट्स ने इस विषय पर स्टडी की। हाल ही में ब्रिटेन की एक न्यूकैसल यूनिवर्सिटी ने जानकारी दी कि काराकोरम रेंज में ग्लेशियर के आकार के बढ़ने का सीधा संबंध हिमालय के उपरी हिस्से में हो रहे जलवायु परिवर्तन से है।
इस वजह से हुई है बढ़ोतरी यहां एक अलग तरह का सिस्टम बन रहा है जिसकी खास बात है कि यह जाड़ों के मौसम की अपेक्षा गर्मी में ज्यादा ठंडा रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत में मानसून के दौरान काराकोरम रेंज के ऊपर बहने वाली हवाएं और अधिक ठंडी हो जाती हैं जिससे ग्लेशियर में बढ़ोतरी होती है।
फ्रांस के वैज्ञानिकों ने इस तरह की पुष्टि
इस बात की पुष्टि फ्रांस के वैज्ञानिकों ने भी की। उन्होंने 3-डी तस्वीरों के जरिए 2000 और 2008 के नक्शों की तुलना की, जिससे ये निष्कर्स निकलता है कि ग्लेशियर की बर्फ में कोई कमी नहीं बल्कि 0.11 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बर्फ बढ़ी है। गौरतलब है कि इससे पहले की रिपोर्टों में इसके पिघलने की बात कही जा रही थी। जिसमें यह भी दावा किया गया था कि बढ़ते तापमान के चलते भारतीय ग्लेशियरों के पिघलने रफ्तार नहीं थमी तो ये 2035 तक पूरी तरह गायब हो जाएंगे।
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