मलेशिया में प्रस्तावित एंटी-फेक न्यूज कानून से मंडराया मीडिया सेंसरशिप का खतरा
फेक न्यूज पर लगाम लगाने के उद्देश्य से मलेशिया में तैयार किए गए एंटी-फेक न्यूज कानून के नए मसौदे ने लोगों के बीच मीडिया सेंसरशिप का डर पैदा कर दिया है।
कुआलालंपुर। फेक न्यूज पर लगाम लगाने के उद्देश्य से मलेशिया में तैयार किए गए एंटी-फेक न्यूज कानून के नए मसौदे ने लोगों के बीच मीडिया सेंसरशिप का डर पैदा कर दिया है। मलेशिया में अगस्त में आम चुनाव होने हैं। वहीं, प्रधानमंत्री नजीब रजाक पर भारी वित्तीय घोटाले के आरोप लगे हैं। ऐसे में ज्यादातर पत्रकारों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित किए गए एंटी-फेक न्यूज कानून पर सवाल उठाए हैं। यह कानून इस सप्ताह की शुरुआत में संसद के समक्ष ले जाया गया था।
प्रस्तावित एंटी-फेक न्यूज बिल 2018 के जरिये सरकार को फेक न्यूज बनाने-फैलाने का आरोप सिद्ध होने पर उसे दंडित किए जाने की ताकत मिल जाएगी। सीएनएन के मुताबिक इस कानून के तहत दोषी को छह साल तक के कारावास और अधिकतम 1 लाख 30 हजार अमेरिकी डॉलर (करीब 84 लाख रुपये) का जुर्माना भरने का प्रस्ताव दिया गया है।
उम्मीद जताई जा रही है कि यह प्रस्तावित कानून बिना किसी विरोध के पास हो जाएगा क्योंकि प्रधानमंत्री नजीब की सत्ताधारी पार्टी और सहयोगी दलों के पास मलेशिया की संसद में 222 सीटों का बहुमत है।
क्या है एंटी-फेक न्यूज कानून इस प्रस्तावित एंटी-फेक न्यूज कानून के मुताबिक, फेक न्यूज का मतलब “ऐसे समाचार, जानकारी, आंकड़े, और रिपोर्ट्स से है जो पूर्णतया या आंशिक रूप से झूठे हैं, और इसका दोषी वह व्यक्ति है जो किसी भी माध्यम से फेक न्यूज या फेक न्यूज छापने वाले पब्लिकेशन को ‘जानबूझकर बनाता है, प्रस्तावित, प्रकाशित, वितरित, प्रसारित या प्रचारित करता है’।”
यह नया कानून अंतरराष्ट्रीय मीडिया को निशाना बनाता है जिसका मतलब है कि अगर दोषी व्यक्ति जब पकड़ा जाता है, तो उसका केवल मलेशिया का नागरिक होने या फिर मलेशिया में होना ही जरूरी नहीं है, साथ ही अगर फेक न्यूज में मलेशिया या देश के नागरिकों का जिक्र है तो नजीब सरकार को देश के बाहर भी कानून के तहत कार्रवाई करने की पहुंच मिल जाती है।
पीएम के भाई ने भी किया विरोध उधर, तमाम सांसदों ने एंटी-फेक न्यूज बिल की आलोचना करते हुए कहा है कि यह कानून आम चुनाव से पहले मलेशियाई सरकार के खिलाफ फैले असंतोष-असहमति को दबाने के काम में लाया जाएगा। मलेशियाई विधि मामलों के पूर्व मंत्री ज़ैद इब्राहिम ने इस कानून की आवश्यकता को दरकिनार करते हुए कहा, “मलेशियाई प्रधानमंत्री के भाई नाज़िर रजाक, जो सीआईएमबी बैंकिंग ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं, ने भी प्रस्तावित एंटी-फेक न्यूज कानून की निंदा की है और इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर ले गए हैं।”
इसके साथ ही मलेशिया बार काउंसिल ने भी इस प्रस्तावित कानून को वापस लेने की अपील की है। काउंसिल के अध्यक्ष जॉर्ज वर्गीज कहते हैं जहां एंटी-फेक न्यूज बिल, फेक न्यूज को अपराध बना देता है, यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता है। उन्होंने आगे कहा कि इसका इस्तेमाल मलेशिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने में किया जा सकता है। इसके अलावा यह प्रस्तावित कानून उस स्थिति में क्या किया जाएगा के बारे में भी नहीं बताता जब मलेशिया की सरकार खुद ही फेक न्यूज प्रकाशित करेगी।
पहले से ही इससे जुड़े कानून हैं मौजूद उन्होंने कहा, “मलेशिया के पास पहले से ही ऐसे तमाम कानून हैं जो मीडिया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नियंत्रण में लेने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इस कानून की कोई जरूरत नहीं है। यह नया कानून मलेशियाई सरकार को बिना किसी ट्रायल के व्यक्तियों को गिरफ्तार करने या हिरासत में लेने, सरकारी दस्तावेज के वर्गीकरण, प्रकाशकों को बंद करने और आपराधिक आरोपों के साथ नकली खबरों को दंडित करने की छूट दे देता है।”
फरवरी में मलेशियाई कानून मंत्री अज़ालिना ओथमैन द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक सरकार इस कानून को इसलिए प्राथमिकता दे रही है क्योंकि फेक न्यूज राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं। उन्होंने असहमति दबाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किए जाने वाले दावों को भी खारिज करते हुए कहा, “यह सभी दलों, सरकार और विपक्ष को एक तरह से ही सुरक्षित रखेगा।”
कलाकारों को सजा दे चुकी है सरकार इससे पहले नजीब सरकार ‘देश में मीडिया स्वतंत्रता का उल्लंघन’ करने वालों पर आपराधिक और दीवानी मुकदमे दायर कर चुकी है। मलेशिया के मशहूर कलाकार फाहमी रजा को इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री को एक बुरा जोकर (एविल क्लाउन) के रूप में चित्रित किए जाने पर जुर्माने के साथ कारावास में डाल दिया गया।
जबकि राजनीतिक कार्टूनिस्ट ज़ुल्कीफ्ली एसएम अनवारुल हक जिन्हें ज़ुनार भी पुकारते हैं, पर देशद्रोह का आरोप लगाते हुए उनके आने-जाने पर पाबंदी लगाने के साथ ही नौ कॉमिक बुक्स को प्रतिबंधित कर दिया गया था।
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