संयुक्त राष्ट्र के अनुसार- विद्रोहियों को जड़ से मिटाने के लिए सेना की ओर से अभियान शुरू करने के बाद कम से कम 5,200 लोग विस्थापित हुए हैं। सरकार ने इन विद्रोहियों को आतंकी करार दिया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की क्राइसिस रेस्पॉन्स की निदेशक त्रिराना हसन के अनुसार- ‘यह नया अभियान एक और चेतावनी है कि म्यांमार सेना को मानवाधिकारों की कोई परवाह नहीं है। गांवों पर बमबारी और किसी भी स्थिति में खाद्य आपूर्ति को रोकना अनुचित है।‘
हसन ने म्यांमार प्रशासन पर नागरिकों की जिंदगियों और आजीविका के साथ जानबूझकर खेलने का आरोप लगाया। मानवाधिकार समूह के अनुसार- अधिकारियों ने रेड क्रॉस और संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम को छोड़कर अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की ओर से पांच जिलों के लिए भेजी जाने वाली मानवीय सहायता के प्रवेश पर रोक लगा दी है। इन पांच जिलों में अभी भी संघर्ष जारी है।
एक प्रत्यक्षदर्शी ने एमनेस्टी को बताया कि सेना ने चावल जैसी मूलभूत चीज की बिक्री और खरीद पर भी रोक लगा दी है। एमनेस्टी ने कहा कि कम से कम 26 लोगों को अराकन सेना के साथ अवैध रूप से जुड़े होने के लिए गिरफ्तार किया गया है। इस जुर्म के लिए कठोर कारावास की सजा है।