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Nepal Political Crisis: चीनी प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बाद पुष्प कमल दहल ने भारत से मांगी मदद

HIGHLIGHTS

Nepal Political Crisis: नेपाल के संसदीय दल के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ( Pushpa Kamal Dahal Prachanda ) ने NCP के विभाजन को रोकने के लिए भारत, अमरीका और यूरोप से मदद मांगी है।
प्रचंड ने कहा कि भारत हमेशा ही नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन करता रहा है। लेकिन अब गैरकानूनी तरीके से संसद का विघटन किए जाने पर भी खामोश रहना समझ से परे है।

नई दिल्लीDec 29, 2020 / 04:33 pm

Anil Kumar

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Nepal Political Crisis: Pushpa Kamal Dahal Prachanda Seeks Help To India For Help After Meeting Chinese Delegation

काठमांडू। नेपाल में उपजे सियासी संकट के कारण नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ( Nepal Communist Party ) टूट के कगार पर पहुंच चुकी है और इसे बचाने के लिए अब संसदीय दल के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal Prachanda) ने भारत से गुहार लगाई है।

प्रचंड ने भारत से कहा है कि पार्टी के विभाजन को रोकने में मदद करें। उन्होंने भारत के अलावा अमरीका और यूरोप से भी मदद मांगी है। इस संबंध में प्रचंड ने नेपाल के राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, स्पीकर कृष्ण बहादुर महारा समेत कम्युनिस्ट पार्टी के तमाम शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। हालांकि जब पार्टी के विभाजन को रोकने का कोई उपाय नहीं मिला, तो उन्होंने आगे बढ़कर अब भारत, अमरीका और यूरोप से मदद मांगी है।

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प्रचंड ने केपी शर्मा ओली के फैसले का विरोध करने की मांग की है। बता दें कि चीन ने इस नेपाली में उपजे सियासी संकट को देखते हुए अपनी दखल बढ़ा दी है और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने खास सिपहसलार गुओ येझोउ ( Guo Yezhou ) के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल को काठमांडू भेजा है।

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भारत की चुप्पी पर प्रचंड ने जताई निराशा

आपको बता दें कि स्थानीय मीडिया कांतिपुर टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कहा कि भारत हमेशा ही नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन करता रहा है। लेकिन इस बार पूर्व पीएम कपी शर्मा ओली द्वारा गैरकानूनी तरीके से संसद का विघटन कर लोकतंत्र की हत्या करने का बावजूद भारत खामोश है, जो कि समझ से परे है।

प्रचंड ने आगे कहा कि पूरी दुनिया में खुद को लोकतंत्र का पहरेदार बताने वाला भारत, अमरीका और यूरोप नेपाल के मामले में खामोश हैं, यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है। उन्होंने कहा कि यदि भारत सही मायने में लोकतंत्र का हिमायती है तो उसे केपी शर्मा ओली द्वारा उठाए गए अलोकतांत्रिक कदम का विरोध करना चाहिए।

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NCP में विभाजन को रोकने में चीन असफल!

आपको बता दें कि NCP में विभाजन को रोकने के लिए चीनी प्रतिनिधिमंडल काठमांडू पहुंचा और सभी शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। जब नेपाल के सियासत में चीन के दखल को लेकर प्रचंड से सवाल पूछा गया तो उनसे कुछ भी सही तरीके से जवाब देते नहीं बना।

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अब ये संभावना ज्यादा नजर आ रही है कि प्रचंड का भारत से मदद मांगना चीन के प्लान का एक हिस्सा हो, क्योंकि NCP के विभाजन को रोकने के लिए चीन प्रचंड को भी प्रधानमंत्री बनाने को तैयार है। चूंकि चीनी प्रतिनिधिमंडल NCP के विभाजन को रोकने में असफल रहा, इसलिए अब प्रचंड ने भारत से मदद की गुहार लगाई है।

प्रचंड ने साक्षात्कार में सिर्फ इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र के पहरेदार बताने वाले भारत, अमरीका और यूरोप के देश नेपाल में निर्ममतापूर्वक संविधान को कुचले जाने पर चुप हैं। उन्होंने कहा कि असंवैधानिक तरीके से नेपाल में संसद की हत्या की गई और फिर भी ऐसे समय में लोकतंत्रवादी देश क्यों नहीं बोल रहे हैं? प्रचंड ने कहा कि हमारे सभी पड़ोसी और मित्र राष्ट्र से आग्रह है कि वे लोकतंत्र के पक्ष में कम से कम कुछ तो बोलें और मैं पड़ोसी देश (भारत) से चाहता हूं कि वे हमारा नैतिक समर्थन करें।

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