दोषियों को कानून के अनुसार दी जाए सजा
यह टिप्पणी शीर्ष अदालत ने साल 2017 के एक फैजाबाद से संबंधित मामले में फैसला सुनाते हुए की। दरअसल कट्टरपंथी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) और अन्य छोटे समूहों ने उस साल वहां धरना दिया था, कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ इसी मामले की सुनवाई कर रही थी। जज काजी फैज ईसा और जज मुशीर आलम की बेंच ने इस दौरान कहा, ‘हम संघीय और प्रांतीय सरकारों को घृणा, चरमपंथ और आतंकवाद की वकालत करने वाले लोगों पर निगरानी रखने का निर्देश देते हैं। इसके साथ ही यह भी निर्देश है कि दोषियों को कानून के अनुसार दंड दिया जाएगा।’
सेना को भी राजनीति से दूर रहने की हिदायत
कोर्ट ने इसके अलावा सेना की ओर से संचालित आईएसआई समेत सभी सरकारी एजेंसियों और विभागों को भी कानून के दायरे में रहकर काम करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी, गुट या व्यक्ति विशेष को समर्थन करने वाली किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल न हों। कई जानकारों का मानना है कि बीते साल हुए आम चुनाव में प्रधानमंत्री इमरान खान को देश की शक्तिशाली सेना का समर्थन मिला था। शीर्ष न्यायालय साथ ही दूसरों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जारी किए जाने वाले फतवा जैसे धार्मिक आदेशों को भी अमान्य करार दिया।