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अयोध्या

बिजली की रंगीन झालरों से नहीं मिटटी की दीयों से रौशन होता है अयोध्या में रामलला का दरबार

खबर के मुख्य बिंदु –
– अयोध्या से शुरू हुई थी दीपावली मनाने की परम्परा
– 14 वर्ष वनवास और लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर राजा राम के स्वागत में हुआ था दीप पर्व
– आज भी अयोध्या के मंदिरों में मिटटी के दीपक जलाकर कायम रखी जाती है प्राचीन परम्परा
– मिटटी के दीपक जलाने के पीछे है एक बड़ा रहस्य

अयोध्याOct 20, 2019 / 10:31 am

अनूप कुमार

How is Diwali celebrated in Ram Janm Bhoomi Ayodhya Deepotsav 2019

बिजली की रंगीन झालरों से नहीं मिटटी की दीयों से रौशन होता है अयोध्या में रामलला का दरबार

अयोध्या. 27 अक्टूबर को पूरे देश भर में दीपावली का त्यौहार मनाया जायेगा | इस पर्व को मनाने के लिए जहां पूरे देश भर में तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं वहीँ धार्मिक नगरी अयोध्या में इस पर्व का विशेष महत्व है | वजह है कि इस पर्व की शुरुआत ही अयोध्या से हुई ,इसी वजह से उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार लगातार तीसरे वर्ष भी अयोध्या में एक भव्य दीपोत्सव कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है | क्यूंकि इस पर्व का आगाज़ अयोध्या से हुआ और भगवान श्री राम की कथा से हुआ इसलिए हमने ये जनाने की कोशिश की आखिर अयोध्या के मंदिरों में और खासतौर पर विवादित परिसर के मेक शिफ्ट स्ट्रक्चर में विराजमान रामलला के दरबार में दीपावली कैसे मनाई जाती है |
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दीप पर्व मनाने के हर प्रांत में अलग-अलग रीति-रिवाज हैं। दीपावली की कई परंपराएं भी बदल गयी हैं लेकिन, अयोध्या में आज भी सदियों पुरानी परंपरा कायम है। भगवान राम और उनके दरबार की पूजा पद्धति आज भी वही है जो वर्षों पहले थी। दीपावली से पहले मंदिरों की साफ-सफाई के साथ भगवान की भी विशेेष तौर नहला-धुलाकर तैयार किया जाता है। नए कपड़े सिलवाए जाते हैं और उनके लिए नए आभूषण बनते हैं। खास बात यह है कि अयोध्या के सभी मंदिरों में सिर्फ और सिर्फ मिट्टी के दिए की जलाए जाते हैं। न केवल घरों में बल्कि मंदिरों के लिए शुद्ध रुई से बनी बाती है दीपक जलाने में इस्तेमाल की जाती है।
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श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि विवादित परिसर में विराजमान रामलला के गर्भ गृह में हर वर्ष दीपावली पर विशेष पूजन होता है। इस मौके पर रामलला समेत अयोध्या के करीब 6000 छोटे-बड़े मंदिरों में भगवान के गर्भगृह में मिट्टी के ही दीपक जलाए जाते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि धरती माता की कोख से निकली मिट्टी के बने दिए के प्रकाश से ही धन-धान्य और संपदा बरसती है। और अंधकार का नाश होता है। भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्राभूषण पहनाए जाते हैं। भगवान को पहनाए जाने वाले वस्त्र और आभूषण का चुनाव महीने भर पहले हो जाता है। इसके लिए देश और विदेश से भक्तों का आग्रह आता है। भक्तों से चढ़ावे के रूप में मिले वस्त्र और आभूषण भगवान को पहनाए जाते हैं।
राम वल्लभा कुञ्ज के मुख्य अधिकारी राजकुमार दास जी महाराज के अनुसार सदियों से ही मंदिरों में दीपावली के पर्व पर भगवान का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है। उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। तरह-तरह के पकवान का भोग लगता है। राम के दरबार में शुद्ध घी के दीपक जलाए जाते हैं। भगवान के सामने फुलझड़ी और आतिशबाजी की जाती है। मंदिरों के मुख्य पुजारी की पूजा अर्चना के बाद अन्य साधु-संत समाज पूजा करता है। इसके बाद आम जन दीपक जलाते हैं लेकिन इनके दीपक गर्भगृह में नहीं जलते।

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