दीप पर्व मनाने के हर प्रांत में अलग-अलग रीति-रिवाज हैं। दीपावली की कई परंपराएं भी बदल गयी हैं लेकिन, अयोध्या में आज भी सदियों पुरानी परंपरा कायम है। भगवान राम और उनके दरबार की पूजा पद्धति आज भी वही है जो वर्षों पहले थी। दीपावली से पहले मंदिरों की साफ-सफाई के साथ भगवान की भी विशेेष तौर नहला-धुलाकर तैयार किया जाता है। नए कपड़े सिलवाए जाते हैं और उनके लिए नए आभूषण बनते हैं। खास बात यह है कि अयोध्या के सभी मंदिरों में सिर्फ और सिर्फ मिट्टी के दिए की जलाए जाते हैं। न केवल घरों में बल्कि मंदिरों के लिए शुद्ध रुई से बनी बाती है दीपक जलाने में इस्तेमाल की जाती है।
श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि विवादित परिसर में विराजमान रामलला के गर्भ गृह में हर वर्ष दीपावली पर विशेष पूजन होता है। इस मौके पर रामलला समेत अयोध्या के करीब 6000 छोटे-बड़े मंदिरों में भगवान के गर्भगृह में मिट्टी के ही दीपक जलाए जाते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि धरती माता की कोख से निकली मिट्टी के बने दिए के प्रकाश से ही धन-धान्य और संपदा बरसती है। और अंधकार का नाश होता है। भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्राभूषण पहनाए जाते हैं। भगवान को पहनाए जाने वाले वस्त्र और आभूषण का चुनाव महीने भर पहले हो जाता है। इसके लिए देश और विदेश से भक्तों का आग्रह आता है। भक्तों से चढ़ावे के रूप में मिले वस्त्र और आभूषण भगवान को पहनाए जाते हैं।
अयोध्या में इस तरह होती है दीपावली की पूजा