भगवान शिव को जलाभिषेक की शुरू हुई परंपरा श्रावण मास के कृष्ण पक्ष त्रयोदशी जिसे व्रत शिवरात्रि व जल चढ़ी तेरस भी कहते हैं शिव पुराण में इस महत्वपूर्ण दिन को लेकर बताया गया गीत सृष्टि पर जब राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया तो उसे समाप्त करने के लिए विशाल समुद्र मंथन का आयोजन किया गया था जिसमें देश भी प्राप्त हुई थी जिसके कारण तीनों लोको में उथल-पुथल मच गया था जिसे बचाने के लिए भगवान भोलेनाथ ने इस विष का पान किया लेकिन विष धारण करते ही भगवान शिव का शरीर अग्नि से भी ज्यादा गर्म हो गया तो शिव भक्तों ने उनके इस शरीर को शांत करने के लिए जलाभिषेक किया था जहां से इस जलाभिषेक की परंपरा की शुरुआत हुई आज भी त्रयोदशी पर्व पर बड़ी संख्या में शिव भक्त भगवान भोलेनाथ के विभिन्न स्वरूपों पर जलाभिषेक करते हैं।
कोविड-19 के कारण कावड़ यात्रा पर रही रोक आज के दिन देश के विभिन्न शिव मंदिरों पर कावड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है तो वही अयोध्या में भी लाखों की तादात में शिव भक्त सरयू का जल भरकर कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। आज के दिन भर शुरू होने वाली कावड़ यात्रा में शिव भक्त भगवा रंग के कपड़ों को धारण कर पवित्र जल को कंधे पर लेकर डीजे की धुन पर नाचते गाते मंदिरों तक पहुंचते हैं और अपनी मान्यता अनुसार मंदिर पर जलाभिषेक का आयोजन किया जाता है लेकिन पूर्व 2 वर्षों से कोविड-19 के कारण किसी भी आयोजन ओके जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है