लेकिन सुरेंद्र मिश्रा का मंसूबा तो कुछ और था। उसने पेट्रोल पंप मिलते ही सालवेंट का कारोबार शुरू कर दिया। इस कारोबार से उसने अकूत संपत्ति हासिल की। इसके बाद वर्ष 2002 में अतरौलिया विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। उस चुनाव में सुरेंद्र जीत तो नहीं सका लेकिन 22000 वोट हासिल किया। इसके बाद उसकी गिनती बड़े नेताओं में होने लगी।
इसके बाद वर्ष 2006 ने मौका देख बसपा का दामन थाम लिया। बसपा मुखिया ने 2007 में सरेंद्र को अतरौलिया से टिकट दे दिया और वह पूर्व कैबिनेट मंत्री सपा के कद्दावर नेता बलराम यादव का हराकर विधानसभा पहुंचने में सफल रहा।
विधायक बनने के बाद सरेंद्र ने पंडित रामनयन स्मारक महिला महाविद्यालय एवं पंडित रामनयन स्मारक इंटर कॉलेज बनवाया। रहा सवाल क्षेत्र के विकास की तो सुरेंद्र ने ध्यान नहीं दिया जिसके कारण उसकी छबि लगातार खराब होती गयी। वर्ष 2012 का चुनाव वह बलराम यादव के पुत्र संग्राम यादव से हार गया।
उसी दौरान सुरेंद्र के कालेज में एक छात्रा के साथ रेप का मामला प्रकाश में आया। उस मामले को दबाने के लिए उसने पूरी ताकत लगा दी काफी हद तक सफल भी रहा लेकिन क्षेत्र के लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना छोड़ दिया। परिणाम रहा की कालेज पर ताला लटक गया। वर्ष 2014 में केंद्र की बीजेपी की सरकार बनी तो सुरेंद्र वर्ष 2016 में मौका देख बीजेपी में शामिल हो गया। वर्तमान में वह बीजेपी की सक्रिय राजनीति करता है और उसका भगवा चोला लगातार चर्चा में है।
स्कूल बंद होने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए सुरेंद्र ने अपने कालेज की बिल्डिंग में अवैध रूप से शराब की फैक्ट्री चलानी शुरू कर दी। यहां शराब तैयार करने के बाद विभिन्न कंपनियों का लेबल और टैग लगाकर ठेकों पर सप्लाई शुरू कर दिया। चुंकि यहां उन्ही ब्रांडों के नाम से शराब तैयार कर सप्लाई की जाती थी जो ब्रांड बाजार में मौजूद है। इससे कभी किसी को शक ही नहीं हुआ। इस कारोबार से भी सुरेंद्र ने करोड़ों रूपये कमाया।
जब इस करोबार की जानकारी सुरेंद्र के विरोधियों को हुई तो उन्होंने मुखबिर के जरिये सूचना पुलिस तक पहुंचा दी। पुलिस ने जब गुरूवार को फैक्ट्री पर छापा मारा तो सुरेंद्र वहां मौजूद था और उसने न केवल पुलिस को रोकने का प्रयास किया बल्कि कमरे में आग लगाकर साक्ष्य भी मिटाने का प्रयास किया लेकिन पुलिस के आगे उसकी नहीं चली और वह जेल तक पहुंच गया।