बसपा को चाहिये मुस्लिमों का साथ
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को इस बात का एहसास है कि उनका जनाधार बहुत तेजी से घटा है। दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों के बीजेपी के साथ तेजी से जुड़ने से चिंता और बढ़ गयी है। ओबीसी वोटर उनसे लगातार दूर होता जा रहा है तो दलित वोटों में भी सेंधमारी उन्हें परेशान कर रही है। ऐसे में जहां बसपा को अपने दलित वोटबैंक को हर हल में एकजुट करना है तो मुसलमानों का साथ भी जरूरी है।
यूपी चुनाव में खराब रहा बसपा का प्रदर्शन
बताते चलें कि एक वो वक्त था जब 1989 से लेकर 2009 के बीच हुए लोकसभा के चुनावों में पूरे पूर्वांचल में बहुजन समाज पार्टी एक ताकत के तौर पर उभर कर आयी थी। ये बसपा के गोल्डेन ईयर्स थे, जब वह चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। आजमगढ़ सीट पर तो बसपा 1989 के चुनाव में भी जीती थी, जब राष्ट्रीय अध्यक्ष कांशीराम ही चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में आजमगढ़ से रामकृष्ण यादव सांसद चुने गए थे। पर 2014 में तो बसपा का पूरा सुपड़ा ही साफ हो गया। 2017 विधानसभा उलेमा काउंसिल का साथ होने के बावजूद खराब प्रदर्शन से पार्टी की चिंताएं आगामी 2019 को लेकर काफी बढ़ गयी हैं।
बताते चलें कि एक वो वक्त था जब 1989 से लेकर 2009 के बीच हुए लोकसभा के चुनावों में पूरे पूर्वांचल में बहुजन समाज पार्टी एक ताकत के तौर पर उभर कर आयी थी। ये बसपा के गोल्डेन ईयर्स थे, जब वह चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। आजमगढ़ सीट पर तो बसपा 1989 के चुनाव में भी जीती थी, जब राष्ट्रीय अध्यक्ष कांशीराम ही चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में आजमगढ़ से रामकृष्ण यादव सांसद चुने गए थे। पर 2014 में तो बसपा का पूरा सुपड़ा ही साफ हो गया। 2017 विधानसभा उलेमा काउंसिल का साथ होने के बावजूद खराब प्रदर्शन से पार्टी की चिंताएं आगामी 2019 को लेकर काफी बढ़ गयी हैं।
खतरे में गुड्डू जमाली का टिकट, अब्बास को टिकट की हलचल
2014 में बहुजन समाज पार्टी की आजमगढ़ में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मायावती ने विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा था। जमाली को मायावती के भाई आनंद का करीबी होने के चलते टिकट मिला था। इसी समीकरण के चलते इस बार भी उनका ही टिकट पक्का माना जा रहा था। पर अब्बास अंसारी के सक्रिय होने से जमाली के टिकट पर खतरा बढ़ गया है। ऐसी चर्चा है कि थोड़े ही दिनों में अब्बास ने जिस तरह मेहनत कर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है और मोख्तार अंसारी के नाम को भुनाने की तैयारी चल रही है। मायावती बाहुबली रमाकांत के खिलाफ अब्बास अंसारी को मैदान में उतार सकती हैं। भले ही मैदान में अब्बास अंसारी लड़ें लेकिन उनके पीछे मोख्तार अंसारी की शोहरत ही काम करेगी। यह भी याद रखने की जरूरत है कि अंसारी परिवार का मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी समेत आस-पास के जिलों में अच्छा जनाधार है। ऐसे में बसापा घोसी से मोख्तार और आजमगढ़ से अब्बास को लड़ाने के प्लान पर तेजी से काम कर रही है। चर्चा के मुताबिक यदि सब कुछ प्लान के मुताबिक रहा तो दोनों का नाम फाइनल हो जाएगा।
2014 में बहुजन समाज पार्टी की आजमगढ़ में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मायावती ने विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा था। जमाली को मायावती के भाई आनंद का करीबी होने के चलते टिकट मिला था। इसी समीकरण के चलते इस बार भी उनका ही टिकट पक्का माना जा रहा था। पर अब्बास अंसारी के सक्रिय होने से जमाली के टिकट पर खतरा बढ़ गया है। ऐसी चर्चा है कि थोड़े ही दिनों में अब्बास ने जिस तरह मेहनत कर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है और मोख्तार अंसारी के नाम को भुनाने की तैयारी चल रही है। मायावती बाहुबली रमाकांत के खिलाफ अब्बास अंसारी को मैदान में उतार सकती हैं। भले ही मैदान में अब्बास अंसारी लड़ें लेकिन उनके पीछे मोख्तार अंसारी की शोहरत ही काम करेगी। यह भी याद रखने की जरूरत है कि अंसारी परिवार का मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी समेत आस-पास के जिलों में अच्छा जनाधार है। ऐसे में बसापा घोसी से मोख्तार और आजमगढ़ से अब्बास को लड़ाने के प्लान पर तेजी से काम कर रही है। चर्चा के मुताबिक यदि सब कुछ प्लान के मुताबिक रहा तो दोनों का नाम फाइनल हो जाएगा।
रमाकांत का नहीं है कोई और विकल्प
आजमगढ़ से बीजेपी के बाहुबली रमाकांत यादव का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। बीजेपी का अपना वोट और यादव वोटों में वह जरूर सेंधमारी करेंगे। ऐसे में उन्हें टक्कर देने के लिये मायावती के पास अब्बास अंसारी और मोख्तार अंसारी से बेहतर विकल्प नहीं। भले ही अब्बास अंसारी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के फागू चौहान से हार चुके हों पर उनका परफॉर्मेंस ठीक रहा था। ऐसे अंसारी बाप बेटों को टिकट देने से उनका पूरा वोटबैंक पर्वांचल में बसपा की ओर लामबंद हो सकता है। मायावती का यह बात भली भांति पता है।
by Ran Vijay Singh