बता दें कि उलेमा कौंसिल बटला एनकाउंटर के बाद इसकी न्यायिक जांच और आंतकवादी घटनाओं में फंसे युवकों को न्याय की लड़ाई लड़ने के अह्वान के साथ मैदान में उतरी थी। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में दोनों सीटों पर प्रत्याशी उतरा। उस समय इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला था। आजमगढ़ सीट पर उलेमा प्रत्याशी डा. जावेद को करीब 59 हजार वोट मिले थे और बीजेपी 54 हजार के करीब मतों से पहली बार यह सीट जीतने में सफल हुई थी। वहीं लालगंज में उलेमा प्रत्याशी ने 75 हजार से अधिक वोट हासिल किया था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उलेमा कौंसिल ने बसपा का समर्थन किया था। लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में पार्टी को जगह नहीं मिली।
अब पार्टी ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। सोमवार को मदरसा जाम ए अतुल राशाद के पास से पार्टी के आजमगढ़ संसदीय सीट प्रत्याशी अनिल सिंह व लालगंज प्रत्याशी राधेश्याम का जुलूस निकला। जो विभिन्न मार्गो से होता हुआ कलेक्ट्रेट पहुंचा। अनिल सिंह ने जिलाधिकारी न्यायालय व राधेश्याम ने सीआरओ न्यायालय में पहुंचकर नामाकंन किया। अनिल सिंह के प्रस्तावक व पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता तलहा आमिर नेकहा कि हमारी लड़ाई मजलूम, गरीब, वंचितों के हक के लिए है। अस्तित्व में आने के बाद से ही इनके लिए हम न्याय की लड़ाई लड़ते रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे।
By Ran Vijay Singh