चर्चा यह भी रही कि बड़ी से बड़ी वारदात के बाद लगे कर्फ्यू में भी इतना सन्नाटा नही दिखा था और ना ही आजादी के बाद किसी एक व्यक्ति की अपील पर पूरा देश एक साथ इस तरह पहले खड़ा हुआ था। शहर रहा हो या गांव लोग घरों में दुबके रहे और टेलीविजन पर देश विदेश की हालत को देखते रहे। शहर में एक दो स्थानों पर निर्माण कार्य जरूर होता देखा गया लेकिन पुलिस ने उसे बंद करवा दिया। गांवों में घर के बाहर दीपक जलाने का सिलसिला भी लगातार जारी रहा। मंडल के तीनों जिलों के अधिकारी पूरे दिन सड़कों पर नजर आये।
बाहर से रोडवेज पहुंच रहे लोगों में इस बात की नाराजगी जरूर थी कि वहां कोई व्यवस्था नहीं थी कि जिससे वे जान सके कि वे पूरी तरह स्वस्थ्य है या नहीं। यहीं नहीं उन्हें घर जाने के लिए सवारी न मिलने पर लंबा सफर पैदल भी तय करना पड़ा। खास बात यह रही कि समाज का हर तबका सरकार के फैसले के साथ दिखा। इसलिए प्रशासन का काम भी आसान हो गया। मंदिरों में ताले लटके रहे। पुजारी भी मंदिर पर नहीं दिखे। शाम होते ही तीनों जिलों में लोगों ने ताली, थाली और शंख बजाकर कोरोना को दूर भगाने का प्रयास किया।
सुबह-सवेरे दैनिक वस्तुओं जैसे अखबार व दूध आदि की खरीदारी करने के लिए लोग निकले जरूर लेकिन सामान की उपलब्धता के बाद तत्काल अपने घरों के लिए वापस चल पड़े। नगर क्षेत्र में दवा की कुछ एक दुकानें खुली जरूर थी लेकिन वहां ग्राहक नजर नहीं आए। मुहम्मद ताहा, शरफराज अहमद, अनिल सिंह, विजय जायसवाल, सर्वेष जायसवाल आदि का कहना था कि सरकार ने लाक डाउन का फैसला समाज के हित को देखते हुए लिया है। शायद इस बीमारी को रोकने का इससे अलावा कोई और रास्ता नहीं है। इसलिए हर कोई सरकार के साथ खड़ा है। खुद गांव के लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए उपाय कर रहे है। हिंदू समाज जहां दिन ढलते ही घरों के सामने मां काली के नाम तीन दीपक जला रहा है तो मुस्लिम समाज नमाज के दौरान दुआख्वानी कर रहा है।
पांच बजते ही हर तरफ गूंजने लगी शंख, थाली और ताली :- जनता कर्फ्यू और शाम पांच बजे थाली और ताली बजाने की अपील का जिले में व्यापक असर दिखा। रविवार को जिले में शहर से गांव तक वीरान नजर आया। चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा। शाम पांच बजा तो हलचल सी मच गई, हर घर से थाली ताली और शंख की आवाजें आने लगी।