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आजमगढ़

बाहुबली की सपा में वापसी से इन नेताओं की बढ़ी बेचैनी, बढ़ सकती है गुटबाजी

मुलायम की जगह अखिलेश के आने से बदल रहे हैं सपा में समीकरण।बलराम को नीचा दिखाने के लिए अपने ही प्रत्याशी को हराने से नहीं चूके थे रमाकांतकभी बलराम और अमर सिंह के कारण सपा से बाहर जाने के लिए हुए थे मजबूर, पार्टी में फिर बढ़ सकती है वर्चश्व की लड़ाई।

आजमगढ़Oct 01, 2019 / 11:30 am

रफतउद्दीन फरीद

Akhilesh yadav

अखिलेश यादव

आजमगढ़. पूर्वांचल की यादव राजनीति में रमाकांत यादव एक बड़ा नाम है। खासतौर पर आजमगढ़ में जहां से रमाकांत यादव चार बार विधायक और इतनी बार ही सांसद रहे। रमाकांत का इस जिले में अपना वोट बैंक उन्हें मजबूत नेता बनाता है यही वजह है कि वे आजमगढ़ में जिस भी दल से चुनाव लड़े जीत हासिल की। वर्ष 2019 का चुनाव हारने के बाद उनके सितारे गर्दिश में है। अब वे सपा में वापसी के प्रयास में जुटे है लेकिन यहां रमाकांत की राह आसान नहीं है। उनके विरोधी और सपा के कद्दावर नेताओं की रमाकांत की वापसी की चर्चा मात्र से बेचैनी बढ़ी हुई है। कारण कि उन्हें पता है कि रमाकांत की वापसी से उनका सांसद बनने का सपना तो टूटेगा ही पार्टी और जनता के बीच उनका वर्चश्व भी समाप्त हो जाएगा।
बता दें कि वर्ष 1984 में कांग्रेस जे से राजनीति सफर की शुरूआत करने वाले रमाकांत यादव सपा के गठन के समय मुलायम सिंह के साथ चले गए थे। एक दौर में रमाकांत मुलायम सिंह के इतनेे करीबी थे कि सपा मुखिया ने उन्हें हत्या के आरोप से बचाया था। गेस्ट हाउस कांड में भी रमाकांत और उनके भाई उमाकांत का नाम आया था। रमाकांत सपा से तीन बार विधायक और दो बार सांसद रहे।

रमाकांत जबतक सपा में थे कोई यादव नेता उनसे आगे नहीं निकल पाया। यही वजह रही कि रमाकांत के विरोधी भी काफी अधिक रहे लेकिन रमाकांत यादव को अमर सिंह से पंगा भारी पड़ा था। वर्ष 2004 में रमाकांत के सपा से बाहर जाने के बाद पार्टी में बलराम यादव और दुर्गा प्रसाद यादव का कद तेजी से बढ़ा। पार्टी ने बलराम और दुर्गा को रमाकांत के खिलाफ चुनाव भी लड़ाया लेकिन वे सफल नहीं हुए।

रमाकांत को यह अच्छी तरह पता है कि सपा से बाहर होने में बलराम यादव सबसे बड़ी वजह है। इसलिए रमाकांत ने बलराम के विरोध का मौका कभी नहीं गवाया। अभी पिछले वर्ष खुद रमाकांत ने सपा जिलाध्यक्ष की बहू जिला पंचायत अध्यक्ष मीरा यादव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में दुर्गा यादव के प्रबल विरोधी उनके भतीजे प्रमोद यादव का साथ दिया लेकिन उन्हें जैसे पता लगा कि बलराम भी प्रमोद के साथ है रमाकांत ने प्रमोद का साथ छोड़ दिया और मीरा के साथ खड़े हो गए।

बलराम और दुर्गा अब अपनी अगली पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे है। दुर्गा प्रसाद यादव पिछले तीन चुनाव से खुद सांसद बनने और बेटे को विधायक बनाने का सपना देख रहे है। वहीं बलराम खुद या अपने विधायक पुत्र को सांसद बनाने के लिए बेचैन है। ऐसा तभी संभव है जब सपा मुखिया के परिवार का कोई यहां से चुनाव न लड़े और दूसरा कोई टिकट का दावेदार न हो। अब चर्चा है कि रमाकांत यादव पांच अक्टूबर को फिर सपा में शामिल हो रहे हैं। इससे इन नेताओं की बेचैनी बढ़ गयी है। रमाकांत और बलराम में जिस तरह से छत्तीस का आंकड़ा है और पार्टी पहले से ही तीन खेमों में बंटी है माना जा रहा है कि रमाकांत के आने के बाद एक और खेमा बन जाएगा। जो सपा के भविष्य के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है।
By Ran Vijay Singh

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