रमाकांत जबतक सपा में थे कोई यादव नेता उनसे आगे नहीं निकल पाया। यही वजह रही कि रमाकांत के विरोधी भी काफी अधिक रहे लेकिन रमाकांत यादव को अमर सिंह से पंगा भारी पड़ा था। वर्ष 2004 में रमाकांत के सपा से बाहर जाने के बाद पार्टी में बलराम यादव और दुर्गा प्रसाद यादव का कद तेजी से बढ़ा। पार्टी ने बलराम और दुर्गा को रमाकांत के खिलाफ चुनाव भी लड़ाया लेकिन वे सफल नहीं हुए।
रमाकांत को यह अच्छी तरह पता है कि सपा से बाहर होने में बलराम यादव सबसे बड़ी वजह है। इसलिए रमाकांत ने बलराम के विरोध का मौका कभी नहीं गवाया। अभी पिछले वर्ष खुद रमाकांत ने सपा जिलाध्यक्ष की बहू जिला पंचायत अध्यक्ष मीरा यादव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में दुर्गा यादव के प्रबल विरोधी उनके भतीजे प्रमोद यादव का साथ दिया लेकिन उन्हें जैसे पता लगा कि बलराम भी प्रमोद के साथ है रमाकांत ने प्रमोद का साथ छोड़ दिया और मीरा के साथ खड़े हो गए।
बलराम और दुर्गा अब अपनी अगली पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे है। दुर्गा प्रसाद यादव पिछले तीन चुनाव से खुद सांसद बनने और बेटे को विधायक बनाने का सपना देख रहे है। वहीं बलराम खुद या अपने विधायक पुत्र को सांसद बनाने के लिए बेचैन है। ऐसा तभी संभव है जब सपा मुखिया के परिवार का कोई यहां से चुनाव न लड़े और दूसरा कोई टिकट का दावेदार न हो। अब चर्चा है कि रमाकांत यादव पांच अक्टूबर को फिर सपा में शामिल हो रहे हैं। इससे इन नेताओं की बेचैनी बढ़ गयी है। रमाकांत और बलराम में जिस तरह से छत्तीस का आंकड़ा है और पार्टी पहले से ही तीन खेमों में बंटी है माना जा रहा है कि रमाकांत के आने के बाद एक और खेमा बन जाएगा। जो सपा के भविष्य के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है।