script1984 के बाद पहली बार सत्ता के साथ चला आजमगढ़, जनता की इन उम्मीदों को पूरी करना होगी बड़ी चुनौती | BJP challenge increased in Azamgarh after by election victory promises to fulfilled | Patrika News
आजमगढ़

1984 के बाद पहली बार सत्ता के साथ चला आजमगढ़, जनता की इन उम्मीदों को पूरी करना होगी बड़ी चुनौती

चार दशक से सत्ता के विपरीत धारा में चल रहा आजमगढ़ लंबे उपचुनाव में सत्ता के साथ खड़ा हुआ है। इससे जहां गढ़ में सपा को बड़ा झटका लगा है वहीं बीजेपी सांसद की चुनौतियां बढ़ गयी है। सांसद के लिए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना आसान नहीं होगा। कारण कि निरहुआ की जीत के बाद ही दो दर्जन से अधिक डिमांड उन तक पहुंच चुकी है।

आजमगढ़Jul 06, 2022 / 04:51 pm

Ranvijay Singh

बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ सांसद निरहुआ

बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ सांसद निरहुआ

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. आमतौर पर सत्ता की विपरीत धारा में बहने वाला आजमगढ़ करीब चार दशक बाद सत्ता के साथ चला है। बीजेपी सपा के गढ़ को ध्वस्त करने में सफल रही लेकिन इस जीत ने सांसद और सरकार दोनों की चुनौतियों को बढ़ा दिया है। कारण कि सांसद और सरकार के पास सिर्फ डेढ़ साल का समय है। इसके बाद वर्ष 2024 के चुनाव का बिगुल बज जाएगा। जनता की सरकार और सांसद से अपेक्षाएं काफी अधिक है। ऐसे में अपेक्षाओं पर खरे उतरना और उन्हें पूरा करना एक बड़ी चुनौती होगी।

दिनेश लाल यादव निरहुआ के सांसद बनने के बाद एक बार फिर वाराणसी-आजमगढ़़ वाया गोरखपुर रेलवे लाइन की मांग तेज हो गयी है। वर्ष 2014 के चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर बीजेपी ने लालगंज सीट जीती थी लेकिन आज तक काम सर्वे से आगे नहीं बढ़ा। निरहुआ ने भी जनता से इस रेलवे लाइन का वादा किया है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे इस कार्य को आगे बढ़ा पाएंगे या नहीं। कारण कि यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है।

इसके अलवा यूपी सरकार पिछले सवा पांच साल में गड्ढ़ा मुक्त सड़क के दावे पर खरी नहीं उतरी है। सरकार विरोध की यह एक बड़ी वजह है। निरहुआ के लिए यह भी एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र में कई पुल एक दशक से अधूरे पड़े हैं। बाढ़ क्षेत्र में रिंग बांध की मांग भी तेज होने लगी है। ऐसे में सांसद और सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। सरकार ने दूसरे कार्यकाल का सौ दिन पूरा कर लिया है लेकिन जिले में गिनाने के लिए उसके पास कोई योजना नहीं है।

जिला अस्पताल में बना एमआरआई सेंटर भी बंद पड़ा है। जनता के दिल में उतरने के लिए इसे भी चालू कराना होगा। नहीं तो अंजाम 2014 जैसा हो सकता है। कारण कि वर्ष 2009 में यहां के लोगों ने बीजेपी को पहली बार मौका दिया था लेकिन सांसद रमाकांत यादव उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए थे जिसका परिणाम रहा कि बीजेपी को विधानसभा और और लोकसभा में नुकसान उठाना पड़ा था।

वैसे भी आजमगढ़ का इतिहास रहा है कि यहां के लोग किसी एक दल को लगातार कम ही मौका देते हैं। देखा जाय तो वर्ष 1984 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और यहां से डा. संतोष सिंह सांसद चुने गए थे। इसके बाद वर्ष 2019 तक यहां से लोग सत्ता के विपरीत ही चले है। चुनावी आंकड़े देखे तो 1989 के चुनाव में यहां के लोगों ने बसपा के रामकृष्ण यादव की सांसद चुना था। वे यूपी में बसपा के एकलौते सांसद थे। वर्ष 1991 में यहां जनता दल के चंद्रजीत यादव जीते।
इसके बाद वर्ष 1996 में सपा के रमाकांत यादव, वर्ष 1998 में बसपा के अकबर अहमद डंपी, 1999 में सपा के रमाकांत यादव, 2004 में बसपा के रामाकांत यादव सांसद चुने गए। वर्ष 2008 के उपचुनाव में फिर यहां के लोगों ने बसपा अकबर अहमद डंपी को सांसद बनाया। इसके बाद वर्ष 2009 में बीजेपी से रमाकांत यादव जीते लेकिन बीजेपी सत्ता में नहीं आयी। इसके बाद वर्ष 2014 में मुलायम सिंह और 2019 में अखिलेश यादव सांसद चुने गए।

अब 1984 के बाद पहली बार यहां के लोगों ने उपचुनाव में सत्ताधारी दल बीजेपी का सांसद चुना है। बीजेपी के चुनाव में जीत का एक बड़ा कारण रहा कि प्रत्याशी से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक यह कहकर वोट मांगते दिखे कि अगर डेढ़ साल में काम नहीं किया तो बदल देना। ऐसे में जनता की जो उम्मीदें इनसे जुड़ी है उसे पूरा करना चुनौती होगी। कारण कि आज भी आजमगढ़ जिला पूर्वांचल के सबसे पिछड़े जिलों में गिना जाता है।

Home / Azamgarh / 1984 के बाद पहली बार सत्ता के साथ चला आजमगढ़, जनता की इन उम्मीदों को पूरी करना होगी बड़ी चुनौती

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो