बता दें कि आजमगढ़ जिले को सपा और बसपा के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है। यहां दोनों दलों के बीच हमेंशा कड़ी टक्कर देखने को मिली है। वर्ष 2014 के मोदी लहर में भी सपा ने आजमगढ़ सीट पर कब्जा जमाया था तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने पांच और बसपा ने चार सीट पर जीत हासिल की। इससे इन दोनों दलों के जिले में दबदबे का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सपा, बसपा और भाजपा के उदय के बाद आजमगढ़ सीट के इतिहास पर गौर वर्ष 1989 में जब मायावती और कांशीराम जैसे दिग्गज चुनाव हार गए थे उस समय इस सीट से रामकृष्ण यादव बसपा के सांसद चुने गए थे। बीएसपी को पूरे देश में मात्र दो सीट मिली थी। इस सीट से अबतक सपा से दो बार रमाकांत यादव चुनाव जीते है। इस समय मुलायम सिंह सांसद है। यानि 1989 से 2014 के मध्य बसपा को तीन बार यहां जीत मिली है जबकि बसपा से रामकृष्ण के बाद दो बार अकबर अहमद डंपी, एक बार रमाकांत यादव सांसद चुने जा चुके है। यानि यह दल अब तक चार बार जीत हासिल कर चुका है। भाजपा के खाते में यह सीट सिर्फ एक बार गयी है। वर्ष 2009 में बीजेपी के टिकट पर रमाकांत यादव ने यहां से जीत हासिल की है।
वहीं सपा के लिए यह सीट मायावती को देना आसान नहीं होगा। कारण कि अखिलेश यादव अच्छी तरह जानते हैं कि इस जिले से मुलायम सिंह यादव का हमेशा से लगाव रहा है। दोनों सीट बसपा के खाते में जाने की स्थिति में यहां सपा के अस्तित्व पर खतरा बढ़ जाएगा। कुर्सी की महत्वाकांक्षा रखने वाले नेता बगावत या भीतरघात कर सकते हैं। वहीं चुनाव नहीं लड़ने की स्थित में कार्यकर्ताओं को बांध कर रखना भी मुश्किल होगा। यानि मायावती की जिद गठबंधन पर खतरा उत्पन्न कर सकता है। कारण कि अखिलेश यादव लाख कुर्बानी का दावा करें लेकिन वे मुलायम की सीट किसी भी हालत में कुर्बान नहीं करेंगे।